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________________ २०० रामचंद्र न सके संभार । वे ले जाहिं सीता नारि || यह चिता मेरे मन बसे । रामनें न द्यू तो जग हंस ।।१६०६ ।। रणी द्वारा चिन्ता प्रकट करना इतनी सुरात राखी पिछताय जनमत भया पुत्र का हसा हाय हाय करि व घरी जब राजा समझावं त्रयग्ण मारू' विद्याधर सब ठौर । सीता स्वयंवर कारण पाप उदम मेरे श्राय । कन्या जाइ तो पूरा मरण ।।१६०३।। सी कठिन श्ररिश के बरी || अपां मन राखो तुम श्रयन ।।१६०८ ।। वे नहि आवैगांव न गौर ॥ पचा‍ राजा ने तवं स्वयंवर रच्या । भली भली सीज कर मच्या ॥१६ देस देस कु पठाएन । सबल पृथ्वीपति श्रई पहुंस ।। रामचंद्र लक्ष्मण भरत । सघन सब का ले मन हस्त ॥ १३१ ॥ श्राए सव मंडप राजान । कन्यां कर जयमाला आन ॥ सुभस्वर ता है धीयता भंग | रतन जडित कर डी सुरंग ॥। १६११०० खेचर भूचर भूपति घने । पहरि ग्राभूषण अव एक ते एक नृप भाये बली । कहां लगि वरण नामावली १३१२ नापुर का हरिवाहन राय । ता डिंग घनप्रभु बैंट आय || केतुमु दुरमुख और प्रभामुख | श्री जैवांगारस का गुरुमुख ।। १६१३।। मंदिर विसाल श्रीधर शुभमनी || मंत्रम के पृरु नृप और ।।१६१४।। जराजा भनि सुप्रभा पती वीश्वर पंचत्र भद्र सिंह को गोविंद का राव राजा भोज भोजलिंग टाइ || वाय नाम सगल का कहै । कन्या देखि फिर मारग महे ।। १६१५ ।। राजकुंवर देते वह भांति । रामचंद्र को देवी क बजाव धनुष तिहां घरथा | मैत्रा करें देव न पड़ा ।। १२१६ ।। जे कोई धनुष चढाव ग्राम मो सीता नं परशय ॥ जैसी बिजली तैसा बच्छ । ज्वाला व्रत घनुष व अ ।।१६१७।। फिर निहां पाग महान कं सूपनि जार्थ भारि ॥ कई धनुष पास नहीं जाई । सूर सुभट करें बहु उपाय ।।१६१६ ।। जो कोई पहुंच किया ही भांति । भस्म होइ प्राणजात ॥ भूपति कहूँ जनक कहा किया। इतने लोगों के प्राण जुलिया ॥१६१२॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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