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________________ मुनि सभाबंद एवं उनका परापुराण १६ आरिजपंड सम देंग नहीं और । महापुरुष उपजे तिन और ॥ रामचंद्र लक्ष्मण बलवंत । तिन के गुगा को नाहीं अंत ।।१८६२।। चन्द्रगति द्वारा स्वयंबर रचाने का प्रस्ताव चन्द्रगति ये कहा जपदेस । रच्यो स्त्रयभर जनक नरेल ।। बचावतं धनुष है एक | वा. लो मंडप तल का 11१८१३।। जो नर करें धनुष टंकार 1 बाण चलाने मंडप पार ।। काकू दीजे सीता धिया । पैसा बत्रा जनक सौं कह्मा ।।१८६४। जनक राय सोचे तिरण मार । कछु मन हरष कडु विस्मै सार ।। रामचंद्र ने धनुष ना उठ। मेग वचन प. सब झुट ॥१८६५॥ चंद्रगति प्रभामंडल सुकुमार । विद्याधर सह लीना सार || रथ परि जनक राय बैठाय । मिथलापुर के बन में प्राय ।।१८६६।। मियिला नगरी केई भूमि केई प्राकास । उतरे मिथला के बिहु पास ।। देखि नन मन भयो उलास | भामल मन लील विलास ।।१६।। जनक भूप नगर में गया । सकल लोक को अति सुख भया ।। गली बंटाई बाजार उछाड । झाकै अटा झरोखां वाडि ||१८१८।। हाट पटरण छाई सब ठोर । बाजा ब. नग्न में सोर ।। इस्ती चढया उछाले द्रव्य । दई असीम प्रजा मिल सर्व ॥१८६६।। पट बट जनक नरेन्द्र | राजसभा में अधिक नरेन्द्र ।। कलस द्वालि फिरि बैठा राज । सीधा सगला मानछिन काज ।। १६००। रणवास में राजा जनक राजा जनक गया रावारा । ऊंचे नीचे लेद उसाग ।। बिदेहा राणी सेवा करै । चमर सहेली के कर ढलं ।।१६०१।। पूछ राणी सुरणो नरनाथ । तुम चित मटके का? साध ।। कवरण देम की देखी नागि । तासू मन लाग्यो अपार ।।१६०२।। मन माने तुम ब्याहो ताहि । मेरी बात सुरगों नर नाह ।। तब राजा बोले सत भाव । पिछला भेद सुगाया राय ।।१९०३।। मायामई अस्व में लिया । मो विजयारध गिरि ले गया । विद्याधर घेरचा सब देस । सीता मांग भामंडल नरेस ।।१६०४॥ बजरावरत धनुष है एक । वाकी उनकी है इन टेक ॥ जो कोई कर धनुष टंकार । सो ही कन्या का भरतार ||१६०५।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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