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पगपुराण
राजा जनक भूमि गोचरी । प्रवर रहै वह भिथलापुरी।। रथनूपुर तें दूर यह देस . बेटी कबहू न देय परदेस ॥१८४८।। जे सीता पाशिये दुराय । होय घनीत रहसि सब जाय 11 उनके घर में गाई सोग ! हम ना करें गई लोग !! १८४६ : चपल बेग सू कही बुलाय । तुम भव मिथलापुर में जाम ।। जनवराय आगों मुझ पास । बाकू कछु न दिखाज्यो बाम 1१3५.०||
चपलदेग चाल्पा सिरनाय । चदि विवांग मिथलापुर माइ ।। विद्याधर द्वारा मायामयी प्रश्व रचना
अम्व एक विद्याघर विया । द्विज गहि हटवाई गमा ॥१८५१।। तापरि रतन जडित पलांण । नाबत कूदत कर खांचा ताण ।। प्रस्त्र प्रशंसा जनक नृप सुणी । मुगल तहां सराहे दुणी ।। १८५२।। भाप जनक नप देखरा चल्या | मुरण लच्छन सब देख्या भला ।। व्यापारी संपूछा मोल । तब वह बांभण भाषे वोल ।।१८५६।। पृथ्वी असा प्रस्थ नहीं। बहे मान्यता प्राज्य जनक है सही ।। तुम निमित्त अघौं इस ठांव । दोइ सहम्न सोनिया भाच ।।१८५४.। व्यापी बु. दिया दिनार | घोडा ले बांध्या दरबार ।। बह प्रकार सेवा तिस होड़ । निहीं मास बीता व. दोड ।।१ ।। किंकर एक यायो इस ठांय । कही हथनापुर मह लगाय ।। दुरजन बाद धेघा सब देम । तुम चलि को उपर नरेस ।। १ ५६.। नगी य त भब सम्यां पला । अस्त्रमतिल धिरे निसांगा ।। सूर मुभ लीया बह मंग । बाजा वाज लहर तुरग ॥१८५७।। परवत पासि ढोल बह पडे । हाथी तिरण प्राग टार न टरें ।। तब वह अस्त्र लिमा मंगवाय । ता ऊपर चढ़िया नग्नाह ।।१८।।
ह्य नप सहित उड्या आवास । सेन्यो साहिं शोक को श्राम ।। सेन्या फिर मिचलायुर जाय । न वा भूप थाप्या तिण ठाय ।।१८५६.1 जनक प्राकाम गमन जब किया । पुरपारण बहुता देखिया 1 सन पृथ्वी का देख्या देस । मन अानन्द्या जनक नरेस ।।१८६० ।। विजयारध गिर पता जाय । अस्व मांग में उतरथा ग्राम ।। सुधी बाला चतं तुरंग । रम्य करणा वन देखि सुरंग ।।१८६१ :: सहस्रकुट चत्शलो जिहां । वन उपवन सरवर है तिहा ।। पछी बैठा करें किलो: । बोल बागी अमृत बोल ।।१६६२९ ।