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पुनि सभाचंद एवं उनका पराग
चित्रोत्सवा पुयी ताकै उर भई । साप पक्षण सोभ उरमई ।। धूम।। निजवाहा : लि । चितः ।।६।। राजसुता सेती अति प्रीत । एक बिमारी खोटी रोत ।। दोन्यां ने मिल कियो बिचार । नगरी छोडि भज्या तिरण बार ।। १७३०॥ लषमी घणी लेकर नप सूता । निकसे दोन करके मता ।। विदरभ देस प्रकृति सिघराय । ए उस नगरी पहुं ते जाय ।।१७३१।। दंपति नमे नगर के पासि । छाय झुपडी करें विलास ।। धोया बाय दलिद्री भये । लकड़ी बेचत कछु दिन गये ।।१७३२।। कुंडल मंडल राजकुमार । वन क्रीडा आये इक बार ॥ देखी श्रिया रूप गुण रासि । कुमर काम की उपजी प्यास ।।१७३३।। असी भेज सिम नई खुलाइ । नृप सग मिली महा सुखपाय ।।
रात दिवस मुगले सुख भोग । इनका ऐमा बण्यां संजोग ॥१७३४।। विन राबिलाप
विष पाया घर संझया यार । मूना घर पाया दिन नारि ।। सारा दिन का हारा यका । भया अकेला गई कालिका ।।१७३५|| त्रिया त्रिया मुख कर पुकार । वही रोवै खाय पछारि ।। गली गली में रोवत फिरै । राय अग्रे जाय गिर पड़े ।।१७३६॥ मेरा न्याव करो तुम नरेस । मेरो अस्त्री गई तुम देस ।। मुझ नारी तुम देहु ढुढाय । नरंतर तजों प्रारण विष खाम ॥१७३७।। सरगी भाइ तुमारे में बस्या । महास पर बिगस बिन वसा ।।
सजा मंत्री लिया बुलाय । लिगम बात कही समझम्य ।।१७३८।। राजा बारा वायत्र
जब वह विप्र आवै मो पासि । तब तुम झूठ कहो के साज ।। मग मंत्रीय सभा सब जुरी । विप्र फेर पायो ता घरी ।।१७३६।। मंत्री इक बोल्या दण भांति । मैं देखी मारग में जात ॥ पोदनपुर के मारग मांहि । मैं आव था देखी तरु छांह । १७४०।। प्रारजिका तिहां तप करें। घणी साथ चेली तप करें।। मखी एक प्रति रूप की खाणि । उनको दिक्षा लीनी अनि ॥१७४१६ बेग जाय पोदनपुर क । रहा क्यू सोर करत है मूढ । विप्र कू सब ही दिया बहकाय । पोदणपुर उरण सोधरण जाय ।।१७४२।।