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पपपुराण
देखे वन उपवन च पोर । देवी गुफा परबत की ठोर ।। देह सिथल वन देस्मा भला । जिहां तिहां देवालय मिला ! १७४३ ।। पाई नहीं फिर प्राथा विप्र । ताकी पावन देखा नृप ।।
बडी दार तब दीया लगाय । गाय मारि कर दिया भजाय ।।१७४ ।। मुनि वीक्षा
बन में बहुत दुखी बिललाय । पारिज गुपति मुनि भेटथा जाय ।। सुणे धरम के सूक्ष्म भेद । सोह करम की टूटी खेद ।।१७४५।। दिक्षा लई दिगम्बर भया । जैन घरम निश्च चित दिया । सियान रहैं नदी के तीर । सहै परीसा काया धीर ।। १७४६।। उनाले गिरि पर बरि जोग ! तप भानु लू बाज रोग ।। माल पसेव पाप बहि जाय । अंसा तग साधैं मुनिराय ॥१७४७।। बरषा काल वृक्ष के तल । वर्ष मेघ अरु नाला चल ।। पानि चूर्व मुनि उपरि पडै । मांडर डांस सदेह. सौ लगे ।।१५४६। लागे वेलि अंग लपटाइ । मुनिवर सहैं परीसा का ॥
चिदानंद सौं लाया ध्यान । दया छह काया की जान ।।१७४६।। रत्नावली का राजा द्वारा पुट करना
मनरण रत्लाबली का राम । अहिकुडल का सुण्या अनाय ।। चऋपुरी तिण घेरी प्राय । कुडल मंडल निकस्या प्राय ।।१७५०।। दुहुधां जुध भया भयभीत । फिर प्रामा गढ़ भीतर जीत ।। भूद किवाड गोला को मार | अनरल भूपति मानी हार ।।१७५१।। किहि न पावै गढ का भेद । राजा के मन उपजी खेद ।। दिन दिन हुवे दुरचलि देह । वालचंद्र सेनापति पूछ एह ॥१७५२।। किण कारण देही तुम षीण । मन की बात कही परवीण ।।
राजा सेनापति सों कहे । मेरे मन में संसा रहे ।।१७५३।। मंत्री द्वारा उपाय बतलाना
चऋपुरी माई निज हाथ । तार्थ चिता है मन साथ ।। बालचंद्र बोलें बलवान । कुडल मंडल पकड़ो राजान ।।१७५४।। बालचंद्र ले सेन्या संग । गढ़ ततकाल कियो तिण भंग । कुंडल मंडल बांच्या जाय । निज पति पास माया तिहं ठाय ।।१७५५।। दई मार पग सांकल घालि । सी रीति पड्या वह जालि ॥ मसन उतारि दिया सन्न छोडि । वन में गया करम की सोडि ।।१७५६।।