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मनि सभाचंच एवं उनका पापुराण
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लक्ष्मण जन्म
नवमासं जब जनम्या पूत । रूपवंत लक्षण संयुक्त ।। पंडित तडि लगन सुभ लिया। दान मान मन वांछित्त दिया ।।१७२६।।
लक्ष्मण नाम कुंवर का धरथा । बमनत रिध सिंघ गुण भरया ।। भरत जन्म
कंकय गर्म भरत भया पुत्र । बहूत रूप अरु सहा विचित्र ।।१७०७॥ अपराजिता के राम जन्म
अपराजिता भई परसूत । रूपर्वत लक्षण संयुक्त ।। पदमनाभ ससि की उद्योत । सब परियण में सोभा होत ॥१७०८।। सुप्रभा पुत्र सधन भया । सो भी देव लोक ते चया ॥ रामचंद्र पदम का नाम । म्यारौं वीर दिये पियाम ।।१७०६।। सेवा करें देवता धने । बोल भासा सोभा बने ।।। च्यारों बाल खेल अति करें । देख आप सब का मन हरं ॥१७१०।। रावण के घर में मम शफुन रावण के घर उलका पात । बिजली पडो कांगिर ढह जात ।। रात दिवस रोवै मजार । कूकर रोवै बारंबार ।।१७११॥ मेंगल चारि सुपने मांकि । बोलें काग होइ जब साझ ।। उल्लु बोल दिन तिहां धणे । असी चिता मन रावण तणे ।। १७१२॥
दशरथ प्रजोध्या का धणी, ताक पत्र जु च्यारि ।। रामचंद्र लक्ष्मण वली, भरत सत्रुधन सारि ॥१७१३।।
अडिल्ल पूजे श्री जिगराय सुगुरु सेवा कर, वाणी सुग मन लाय सुद्ध समकित धरै ।। प्रगटयो जस संसार कीति बहु तिण तणी, देव सुपावह दान दया पाल घणी ।।१७१४।।
चोपई धारों भाइयों द्वारा विद्या सीखने का वर्णन
कंपिला नगर का थान । भारग सिर क्षत्री का नाम ।। जब उह पुत्र सयाना भया । निस्य उसाहरणा आव नया ॥१७१५।।