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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
विद्या साधी पूरण हीच |
कैकेया प्राय बैठी रथ बीच तुम कोज्यो निर्भय हों युभ्र । रथ तुम भरमा चलाऊं सुध ।।१६८०।
सुभमति को सन्यां सब चली। जानें सकल युब की गली ॥ हरिवाहन के सनमुख शेड | चा धनुष वांग ने छोड ।। १६८१।२ सह न सके दशरथ के बारण । राव हो के भूले अवसान || भाजे तब हो सकल नरेस हम प्रभु जी उपदेस ।। १६८२ । । रोडपति नहीं रहें । कुल कलंकजुगि जुगि कौं दद्दे 11
तब सब सम एक भये । सनमुख लन भए ऋथए ।।१६८३॥ सूरवीर दोउं धां लड़ें। पंदल सूं पैदल कट मरें ॥
हाथी
छूट
हावी भुत ६.१६८४ ।। नगन खडग दामिन जिम दिये। छुटं गोली सर कातर छिौं । जैसे बरखे घरणहर बार से पडें दोऊं तरफ थी मार ।।१६८५ ।
है॥
दुधां पड़ी पर्वत सम लोभ । तिए को गृध्र मार मार वाणी तिहां होय । कायर धीरज वरं न कोय ।।१६८६ ।।
१८३
हेमप्रभु के सनमुख भया । मारी गदा टूटि रथ गया || हेमप्रभु गिरपडिया सब रथ नीचें आए ससु पाव ।।१६६७।। लांग मूल को लेकर भजे । दशरथ जीत्या बाजा बजे || राजा सर्व सरब को नये । छोडि कोष निर्भद गये || १६६॥ सुभमति ने दोणी ज्योनार । सगलां की करिकं मनुहारि ॥
क्या दई दसरथ को व्याह । गये अजोध्या घ उछाह ॥१६८९ ॥ मंत्री सकल वधाई करी । सकल प्रजा सुख श्रानंद भरि ।। नया जनम दशरथ फिर पाय । कलस कालि पद बैठो राय ॥१६८०
भोग मुगति में बीतं घडी । देस प्रदेस की रति करी ॥ जिहां हिां दशरथ गुण चलें । दुरजन दुष्ट बहुत दल मले ।। १६६१ ॥
वहा
देश देश के भूपती, मांन दसरथ प्राण ।
कुलमंडल नरपति भया, रघुबंसी जग भाग ॥। १६६२ ।।
चौपाई
सकल ठाम की चिंता मिटी दुख संताप की रज सब कटी ।। निरभय राज करें नरनाह । कैकया के गुण करें सराह || १६६३||