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वाभानंद एवं जनरल पार
१८१ जे तुम जाय किहीं छिप रहो । लो अासा जीने की लहो ।। अब मैं जाय जनक सुधि देहूं । तुमकों मकल सुमाया भेउ ।।१६५३॥ दशरथ तब बुलाय मंतरी । मता बिमारं चिता परी ॥ वह पेचर हम भूमि गोचरी । बाको मुरभर कू गाई कगै १६५४।। राजा देश छोडि भजि गया । निज सुरत कर नए श्रापिया ।। अंत है पुर ले राख्या पापि । गंणी वा लिंग सेवक राइ ॥१६५५॥ याही रीत जनक नप से । कलहनी इनकी बह विध टरी 11 कुभकरण भभीषण भूपाल । बहुत ले चले साथ चि डाल ।।१६५६।। पाई मुरति अजोच्या प्रांन । दसरथ है सतस्त्रनै सथांन ।। याही विध बाह्रकुमारि । दोउं सिर ले गए तिण बार । १६५७।। दोऊ नगरी पीटं लोग । सब परियण मैं बाळो सोग ।। रावण पासि आरिण दोज सीस 1 पुजा दान मिमित्त जगदीस ॥१६५८।। अपना मन कीया निश्चंत । अमर हुवा रावण वलवंत ।। होणहार टार्यो किम दरै जाइ । जै कोई करें कोडि उपाव ।।१६५६।। दशरथ जनक पूर्व दुख दिया । या भव को इनमें व्यापिया ॥ बहुरि पुन्य कीया सुभ काम । प्रगट भया तासों फिर नाम ।।१६६०।। दोन्यु नृप आए निज देस । बहुरि दोन्यू भए नरेस ।। टरयौ कलह निर्मबो प्रानंद । हुवा सहाई धर्म जिरवंद ।।११६१५ ।
होणहार कैसे टल, बहुविध कर उपाय ।।
अरण होणो होगी नहीं हह लिमित्त का भाव ॥१६६२॥ इति श्री पपपुराणे दशरथ जनक काल बला टालण विधानकं ।।
२२ वां विधानक
चौपई कैकयी मर्यान
कौतिग मंगल उतर सैन । शुभमति भूप प्रजा मुख चन ।। पृथ्वी राणी ता पटधनी । द्रोगापु कैक्या पुत्री वणी ॥१६६३।। लक्षण रूप सकल गुणभरो। महा विचित्र के पुत्री ।। छही राग तीस रागणी । अठतालीस नंदन सोभै घणी ।।१६६४।। नाद भेद वीणा के भेद । ग्यांन सास्त्र के जाणे भेद ॥ देस देस की बोली बैंन । कोकिल कंठ सुगात सुख चैन ।।१६६५॥