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मुनि समाचंद एवं उनका पधपुराण
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कारण कवरण पिता सों मोहि । सांची बात कहं मैं तोहि ।। दूत गया तब राजा पासि । निठुर पचन मुख कहे प्रकास ।।१६२६।। कोप चढया भपति स्योदाम । मन में जूद्ध करण की प्राम ॥ अजोध्या नगर घेरचा चिहूं अोर । सिधसेन सों कीनी झोर ।।१६२७।। सिंघसेन कू बांध्या पाह । फेर राज जन मुगत्या प्राइ ।।
राज करत कितना दिन गये । चेत्याधर्म दिगंबर भए ॥१६२८|| सिधसेन कूसोप्या राज । स्योदास किया मुक्ति का साज ।। वाके पुत्र भया बर भरथ । चतुर्वक्र पर हेमारथ ॥१६२६।। दशरभ उदय पाद पृथ्वीरथ भए । अंजिनरथ इंद्ररथ पाए ।। दीनानाथ मायंत वीरसेन । प्रीतमन कमलवध सुभचन ॥१६३०|| कामलवाचवा रविमन और । वसंत तिलक तो सोमै ठोर ॥ कुमेरदस अकुधभगत । कीर्तमन अमा सुरज रथ ।।१६३१।। दुदुरय मृगेन्द्रसेन प्रापली । दमन हिराकुल मां की 11 त्रुम प्रसपल कफुथल ननुरेस । रघुराजा जीते बहु देस ।।१६३२।। ग्रहण भूप परतापी भया । बल पौरष प्रति प्रतिपाल दया ।। है प्रथवी मती राणी पटवणी । रूप लक्षण गुरण सोभा प्रती ॥१६३३। ताकै गर्म दोइ सुत भए । अनंतरथ दसरथ निरभाए । या राय के धरम सुकाज | अनंतरथ को सोप्या राज ।।१६३४||
सहस्ररश्मि रावण सौं युधि । वा समैं एक ऊपजी बुधि ।। वशरष का राजा बनना
प्ररण अनंतरथ दोर्नु प्राई । सहन रश्मि में दिक्षा पा ॥१६३५॥ राजा दसरथ पाई मही । समद्रप्टी जानु ते सही ।। महषमती नगरी का राम । विभ्रमधर राजा सिंह ठांब ॥१६३६।। अमृतप्रभा नाक अस्तरी । अंबप्रभा भई पुत्तरी ।। गाय दसरथ को दई विवाह । भोग मगन मों कर उछाह ।।१६३७।। मौसल नगर अपराजित भूप | अपराजिता पुषी सुखरूप ।। किया व्याव दसरथ सौ प्राइ । भोग मांहि सुख घन विवाह ।।१६३८।। महारगुर तिलकराइ । भीममती सोम पटथाइ ।। कंकई पुत्री दसरथ कुंदई । राजभौग तहरे विलसत भई ।। मंगलायती नगरी के मात । सुमिना सोमे इह मांति ॥१६३६॥ इति श्री पपपुराणे कौशल महातम पसरप उत्पत्ति विधान