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लिखे पढँ बहू शास्त्र पुराण । च्यार वेद का करें वांग || जातिग वैदक भरणी व्याकरणं । श्रागम कहे मन संसय ह ।। १६६६॥ चदा बहतर कन्ना । जुधरीत को जाम भला || सीलनंत रूप की खांनि । तीन लोक का सम ग्यांन ॥। १६६७६
कन्या भई विवाहण जोग । सुमति मंत्री राजा पूद्धियी नियोग || मंत्री सबसा लीया बुलाय । बैटर मता बिचारें राय ।।१६६८ ।। कन्या सो हैं गुरण भरपूर । यातें सरस होय जे मूर || तासो समकि कीजिए विवाह | उत्तम कुल १३
स्वयंवर रचना
मंत्री कहें स्वयंवर रवी देश देश ते ग्राव रस्य
पद्मपुराण
। भली भली सौ जो विहां संचो ॥ कन्या के कर माल दिवाय ।। १६७० ।।
जागलि बार तास सो वरी । यह विचार हिये में घरों ॥। बहुत भले पाटंवर आणि । जिस ते बहुत समाने ताण ॥। १६७१।० कनक बंभ रतनन की जोति । नरपति आए तिहां बहुत || परिवाहस हुमप्रभ भूप सिंहास वहां घरं अनूप । १६७२ ॥
तब कन्या वरमाला लई । ताकं माथि नृपति इदई ॥ चकडोल चहि कन्या निहां ग्राय । विराली बनाव घाड़ || १६७३ ॥
वशरथ द्वारा युद्ध
दसरथ के गले घाली माल । तब सब कोप उठे भूपाल || कहै एक एक नगर का थी। यामै बल पौरिष क्या हरणी ॥। १६७४ ॥ पकडनाये रावण के लोग भागि बच्या अब सुगतें भोग ||
परि रोक के किया। माला दई राजा की धिया ।। १६७५।। अष्ठे बड़े फिर चांले राय का राजा की मारे ठाई ॥ हरिवाहरण हेम प्रभु मैं गए। अँसे बघत ऊनु त्रुनिए । १६७६ ।।
मंगला नृपां यह मत्ता विचार । दसन्थ को घेरा सिंह बार ॥ सुभमति राय करूँ समझाय । कर्कयां सो अयोध्या ले जाइ ।। १६७७॥
हम इन सौ समभंगे बात बोले दसरथ राजा सुखों।
तुम निज घर पहुंची कुसलात || इनकी तो मैं पल में हों ।। १६७८ ।
तुम देखो मेरा प्राक्रर्म । इनका मारि गमाउं भर्मं ॥
चढघा कोप- दसरथ सूपती । रथ पर बैठी उजली रती ।। १६७९ ।।