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पापुराण
राजा आमिष अाहार नित लेई । मांस बिना कल मुख में ना देई ।। सुदर नाम रसोईदार । राजा आगे करी पुकार ।।१६१२॥
श्रावग तणौं अठाई प्रत्त । तातै प्रामिष कोई न करत ॥ राजा द्वारा मांस खाने की इच्छा
राजा कहै जो आमिष ल्यावै । तो मुझ आजि रसोई भाव ।।१६१३॥ ब्राह्मण कियो नगर तलास । बधिका के घर में नहीं मांस ।। कई न पाया तवे मसाशां गया । बालक मृतक उठाय कर लिया ॥१६॥ रांध्या प्रारण रसोई बीच । असे करम किये उस नीव ।। राजा खाइ बडाई करै । बहुत सुबाद हुआ इण परं ।।१६१५।। तीन से गांव विप्र को दिये । विप्र को सूख हना अति हिये ।। त्यावे नित बालक चुराइ । ता वालक ने राजा स्वाइ॥१६१६।। नगर लोक मन मिता भई । छिप छिप सुरति चोर की लई ॥ बालक गह्मा रसोईदार । लोका मिल पकड़धा तिन बार ॥१६१७।। मारधा घणा पासली तोडिन पुछया पीछे सबै उह चोर ।। तु नित वालक ले ले जाय । तो हम मारेंगे ठाइ ।।१६१८।। द्विज बोल्या राजा के काज । इनको मांस रसोई काज || नृप आग्या से मालक हरे । प्रजा लोग सुस कर परजले ॥१६१६॥ सिरसेन कूवर जाय । मंबीयो सेती कही समझाय ।। राजा है परजा के वाडि । खेत कर जे बाढि उखालि ॥१६२०।। अंसी हम परि हुई अनीति । कैसे बसे लोग भयभीत ।।
सब मंत्री मिल कियो विचार । स्योदास भूप तब दियो निकाल ।। १६६१!! सिघसेन का राजा बनना
सिधसैन्न प्रति दीन' राज । भयो सकल मन बंचित काज।। स्पोदास भूप अरु सुदर द्विज । बनमें देल्या प्राचारज ।।१६२२।। नमस्कार मुनिवर कू किया । पाप पुन्य का भेद पूछिया ।। सुण्यो घरम आमिष का दोष । राज लिया संजम का पोष ।।१६२३।। महापुर नगर किया परवेस । राजा विनां पलथा बह देस ।। तहां का राज स्योदास ने दिया । दंड सकल रायन परि लिया ॥१६२४॥ सिंघसेन पं भेज्या दूत । हमश्राप मिलो तुम पूत ।। सिंघसेन बोलियो नरेस । प्रजा मोहि दीयो नृप भेस ।।१६२५।।