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मुनि सभाचंद एवं उनका पपपुराण
वरण भूप की घेरमा प्राय 1 अंसा मता नृप किया चपाइ ।।
सकल ठोर फौं गए उकील । प्रादो वेग मति ल्याबो ढील 11११३६।। राय बहलार के पास रागरण का सन्देश
राय प्रहलाद पं गया बसीठ । चीती दई पढी भर दौट ।। मांधे कागद लिया चढाम 1 पदि पति पत्री नवण कराय ॥११४०।
दल सज किया पलाणी दुरी । पवनंजय कुमर वीनती करी ।। पवपंजय द्वारा पुर में पाने का प्रस्ताव
तुम मा बठि करो प्रभु राज । तुम भाग हम साथ काज ।।११।१।। पिता प्रागै सुत करें न काम । महा कपूत कहै सन गाम । बोले राजा सुरणी कुमार । तुम क्या कारणौं जुध की सार ।।११४२।। कुमर पितासो विनती करै । सिंह पुत्र किसका भय धरै ।। ताको रुवसा सिखावे दाव । भाजे हस्ती सुरगतो नांव ।।११४३।। हस्ती भाजै थानक छोडि । सिह के सुत की सई न ठोडि ।। पिता कहै दिखायो प्राकर्म | मेरे मन का भाजभम ॥११४४।। जब बोल्या पवनंजय हमार । निराका कारण मिण स्टार ।। कांम पई तब देखो वात । वाह वाघु अनही जास ॥११४५।। सोम माल दरी न बस । ज्यौं सरवर में सोमै हंस ।। कार सनान बहु भोजन खाइ । उत्तम वस्त्र तिन परे जाय ।।११४६।।
मांधि हथियार सेना संग लई । बहुत प्रसीस बडे जन दई ।। मनना पवनंजय को विधाई
सब कुटुब भेट्या गल ल्याई । तिहां मंजनी टाढी प्राय ।।११४७।। देह मलीन रही मुरझाय । ताहि देखि मन पवन रिसाय 11 वह क्यो पाई है इण वार । निठुर वचन मुख कह्या अपार ॥११४८।। श्रिया कौं लागे मोठे दयण । सूणि सुरिण होय वहुत ही चैन ।। धन्य धन्य है पाज का द्योस । पिय के वचन सुने फरि हौंस ।।११४६।। बहुरि अंजनी विनती करें। नीची दृष्टि बरण चित परै ।। जे लुम थे इस नगरी मध्य । तुमरी निस पावें भी सुध ।।११५॥ मेरे मन ऐसी थी पास । इक दिन प्रभु बोलेगा हास ।। अब तुम गमन करो परदेस । तुम बिन क्यु जोषस्थु नरेस ।।११५१।। बढ़त भांति बीनवे मंजनी । वाकै श्या न पायी चिमी । हस्ती चवमा साथि सुभ घड़ी । वहोत सौज मीनी सुम बड़ी ।।११५२।।