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मुलि सभाचंद एग उनका पापुारण
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अंजनी ने देख्या जब पौन । उठी पुकारी तु है ह्यां कौन !! दहा को बबै जगावण लगी । पुरुष देखि भंजनी भगी ॥११६७।। बोले पवन उरै मति नारि 1 है पायो तेरा भरतार ।। इतनी सुणि मन भयो उल्हासि । विघनां पूरी मन की प्रास ।।११६८।। नमस्कार पवन सौ कियो । दरसण देग्यत दुख बिसारियो ।। बंठा सेज्या ऊपर प्राय । गद गद वोल बोल बहुभाइ ॥११६६।। दासी बात कही छी बुरी । मैं वाकी कछु चित्त न घरी ।। मोकु दुख लिख्या ई भांति । कर्म रेखा मेटी नहीं जात ॥११७०॥ तब पवनंजय धीरज देव ! प्रपणे मन नहीं पित करेइ ।। मैं तो श्राप या प्रयोग । तुन यानि ।।१ हम तुम है दोउं बालक देह । बहुत दिना दुख होत सनेह ।। सोभा रयण चन्द्र से वर्ण । असे सूख देखेगी धणे ॥११७२।। जिम पावनी निशा के समै । चंद्र प्रकासि ज्योति कू गर्म ।। जब म्है नआए किया परकास । तब ही जागो भोग विलास ॥११२३३॥ दोऊ वोलें अमृत बंण । दंपति मिले भया सुख चैन । दोन्यू करें कोक की रीत । प्रथम ममागम विया भयभीत ।।११५४॥ गरब सृज भुगत्या बलवीर 1 दोन्यू मुग्ली इक मया सरीर ।। बहरयां ते मूते गाल लागी । बीती रात शणि गयो भागि ॥११७५।। पवन सरूप देखि छवि शांति । हारि शमि मांनि भाज्या प्रातः ।।
वि उदयाचल उग्या आई । दरसरण देख्या चाहै राइ ।।११५६।। वसंतमाल परमातहि जागि । पायी निकट बारी लागि ॥११७७१ . पौलि खोलि पाई इसा पास । अंजनी वैठी नीच जास 14 कुंघर जगाया कर पद नांगि । बागि पदन अंगराया अाप ॥११७८।। मंगुली चटका अरु जंभाइ । रक्त नया बहतै घमाइ ।। गंतरा काजि सुरत गई भूलि १ भए मगन दोन सुख के भूलि ॥११७६।। प्रतसित पास पवनंजय गया। भला मता दीन्यु मिल ठया ।। पाबेर भया प्रगट इह ढाम । कातर होह हमारा नाम ।।११८०।। सन कोई फिर पाया कहै । कपूत नाम प्रथ्वी पर लहै । बागे पहरि भये तय्यार । अंजनी कर प्रधिकी मनुहार ११५॥ हमने काज रावण का कारण । कारज साधि वेगा फिरणां ।। अपणां भान राखियो अहोत्र । में से कई पयनंजय बोल १११८२। अंजनि के भरि पाये नैन । कहो कुटुंद सों अपने बैन । मैं असनात किया है माबि । मर रहे लो लागं लाज ॥११८३।।