________________
मुनि सभाचंद एवं उनका पमपुराण
मैं उनने बहु विनती करी । कुटंन सौं कहो वात इण घरी ।। बे बोले यह लो मुंदडी लेउ । जो कोई पूछ तो वह पेज ॥११६५।। जो मेरी मानु नहीं वात । देव मुंदडी मार्नु सांच ॥ केतुमती बोली रिसस्वाद । निठुर वचन भाष्या बहु भाइ ॥११६६॥ बाबीस वरण विवाह को भए । तेरा नाम सुणत दुस्ख सन्ते । जो तेरी ह देखता छोह । महा कोप उपज था वोह 1:११६७४। चला गमय तुझलों रिस करी । तेरी दया नहीं उर धरी। मंमी तोस्यू क्या सनमंघ । बह फिर प्राया खनै बंध ।।११६८।।
विभचारिणी ते किया कुकर्म । मोसु कहै पवन का भर्म ।। अंजना को तारना
लाी लात मारी घणी । और टौर अजनी को हणी ।।११६६।। वसंतमाला परि कोपी बहत । हे विभचारिणी तुर्ह ऊत ।। सेरे प्रागै कारण इह बा । झुठा पवनंजय कुदे दुवा ॥१२००।। सोकु देषि कहा हूं करउ । मारि तोहि जम मंदिर पर । अकुरूरा किंकर लिया बुलाइ । इनकी पिता घर ले गाइ ।।१२७१।। महेन्द्रपर मांहि लेके छोडि । दोई जीवस्पों क्या मारू औरि ।। जो मैं अव दोन्यू जीव हतों । नोतम बंध भमु चिहगती ।।१२०२।। इह बात प्रहलाद नप सूनी । क्रोध लहरि उपजी चित घनी ।।
वेगि निकाल मंदिर तें देहु । या का नाम न फिर फै लेह ॥१२०३।। मजता का निष्कासन
एदन करत काढी प्रजमी । वसंतमाला ताफै संग दिनी । उनके पीछे किंकर हुवा । बहृत तरास दिखावे कुवा ॥१२०४।। कल्क वेगि वेगि लुम 'बलो। उनका चरणन परती लौ ।। असुभ करम ते इह दुख भया । पावें भ्रमी महेन्द्र की धिया ।।१२०५।। कठिन कठिन वन दर गई । किकर के मन चिन्ता भई ॥ इह पवनंजय की पटधनी । या को बेला प्रेसी वणी ॥१२०६॥ अब में छोहीं इनको दुःख । इनके दिन फिरए वह सुख ॥ सुण पवन मारै मुभा ठौर । सब मुझ कोरा झुलाव और १२०७।। किंकर कर दीनती बहु भाप्ति । मेरी चूक नाही कछु मात ।। तुम्हरे सासु सुसर ने कहा । उनके बचन तुम्हें इस सह्मा १२०८।।