________________
मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
पवन संग बहुँ सेन्यां द६ । बरुण भूपसौं चरपट भई । वरण राय के झूझे पूत । यांच्या करण राय अवधूत ।।१३३३।। खरदूषण तब लिया छुडाय । वरण आणि लगाया पांय ।।
पवनकुमार सराह्या भूप । या का अधिक विराजै रूप ।।१३३४।। पवनंजय का प्राविस्यपुर प्रागमन
भई जीत लंका फिर गया। आदित्यपुर पदन प्राध्या ।। मात पिता के चरण नया । परियण मांहि बधावा भया ।।१३३५।। अंजनी तरणा महल में जाम । देखी नहीं त्रिया तिह ठांय ।। मन माहीं अति चिता भई । मंदिर थी राणी कित गई ॥१३३६॥
मात पिता सू पूछी बात । मात कह्या उससे बिरतांत ।। पवनंजय का अना के निष्कासन के समाचारों से दुखित होना
तिरण कारण घरतें दी कादि । उंण दूषण किया धा बाढि ॥१३३७।। बोले पबन तन वन! .::। तुम मु ते स 161 तब तुम देते वाहिर निकाल । वा बिन प्राण जाहि इह बार ॥१३३८।। वाकी मोहि बतावो सार । अजनी पठाई किसके द्वार ।। वा हम भेजी पिता के मेह । तुम उसकी सुधि जाकर ले हि ।।१३३६॥
प्रहसित मित्र लिया तब साथ । दंतीपुर तहां महिंद्रनाथ ।। पवनंजय का ससुराल काना
पवन कुमार सुसर ५ गया । उन सनमान बहुत विध किया ।।१३४०।। अंजनी तणे महल में गया । देखी नहीं सोच तिण व्या ।। कन्या एक देखी तिण ठांब । पूछ बात पवनंजय राव ||१३४१॥ उन सब कहीं सुसर की बात । काही सुता पिता पर मात ।। प्रेसी सुगस खाई पछार। बड़ी बार तन भई संवार ।।१३४२॥ महेन्द्रसेन सौ तब कही प्राणि । तुम क्यो दई मजना जाणि ।। महेन्द्रसेन बोलं समझाइ । याकु मासु पोलभा लाइ ।।१३४३।। सो हम प क्यू गखी जात । प्रोलभा ते सुकुल लजाइ ॥ पवन तिलक धरि घरि सुध लेइ । कोई निश्च खबरि न देह ।।१:४४।। प्रहसित सों पवनजम कहै । तुम फिर जांहि खबर वे लहै ॥ प्रहलाद केतुमती पं ज्वाह । ए वारता कहो समझाय ।।१३४५।। जो मैं प्रजनी पाऊं कहीं । तो मुझ प्रारण रहेंगे सही । बो वह मेरे च न हाथ । तो मैं भी प्राण तजू उस साथ ॥१३४६।।