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मुनि सभार एवं उनका पमपुराण
वनमाला पर राजा का प्रासक्त होना
वनमाना वित चल्यो देवि भूपाल को । राज रिद्धि सब देखि भयो सुख वाल को ।। मो सी नारि सकए राय घर जोदए । कहा चरिणक पर जोवन थिरता खोइये ।११४३७॥ राजा सोच अधिक मन में करें । नरपति कर अनीत सुमर नरको पई ।। हूं नृपति धरमिष्ट पाप कसे करू।
व्याप्यो भधिको काम सु धीरज किम धरों ।।१४३८।। राजा को व्याकुलता
गही राय तब मौन भेद नहि पाइये । कर वैद्य उपचार सु मौषध ल्याइये ।। कह दोष पित्त वाय का ग्रन्थ बिचारि के । उसको रहै न विकार विहार के २६ पंडित जोतिग कहँ ग्रह चाल को । नवग्रह खोटे व्या या भूपाल को ।। मुख बोले नही बोल सुग्रह खोटे लगें ।। बहुत बळी गंभीर जुड़े प्रीतम सग ।।१४४० ।।
सुमति नाम एक मंत्रबी, पायो भपति पास । लोग उठाय दिये सर्व, पूछ करि अरदास ॥१४४१।। सेवक स्यों मनकी कहो, किंण कारण गही मौन । सौच बात मुख उचरो, तुम मन संसय कौन ।११४४२।। राजा मंत्री सों कहै, सांभलि सुमति सुजाण ।। बनमाला में देख करि, चये जात हैं प्राण ।।१४४३।। मंत्री विनद राय सों, तुम नृप प्रछो सुग्यांन ।। परनारी के संग थी, होइ घरम की हारिग ।।१४।४।। बोलें नृप अकुलाय करि, सुण हो मंत्री बात ।। ग्यांन भेद कब लग भणों, वा विनमो जीव जात ।।१४४५।। मंत्री सोच विचार कर, दूती लई बुलाइ ।। भेजी धनमाला कनें, लीनी तुरत मंगाय ॥१४४६।।