________________
१६८
पद्मपुराण
सीतल नाथ जिनेन्द्र ते, हरिबंसी हुए प्रनंत ।। नांम वहां लग वरगाए, कहत न मावे शत ।।१४५६।।
चौपई मुनिसुव्रतनाथ का जन्म
मागर नगर सुमित्र नरिन्द्र । पोमा देवी मन मानंद ।। सघन ग्रह नगरी में बसें । दुखी दलिंदी कोई न नौ ॥१४९०।। पदमादेवी पिछली राति । सुपने देखे नाना भांति ।। स्वेत गयंद दृषभ अस्यंघ । लक्ष्मी माला पूनमचंद ।।१४७१।। सुरज उदै मच्छ जल्न तिर | कन सरोवर निरमन भरें ।। सिंघासा रतनन की ममि। देखी श्रगान बल निरघम ।।१८७२।। कुंभ जुगल देख्या जल भरया । देव विमान अनूगम भरपा ।। देख्यो धरणेन्द्र देवता माग । थयो प्रभात उटी जब जाग ॥१४७३।। सोलह सपना देख्या ३ महि । सुलिन भूः स कहो ना बात ।। सूणे सकल सुपना के बैन । विगसन बदन भयो उर चन ।।१४७४।। होय पुत्र विम्बन का धणी । हरिबसी कूल वाणी वणी ।। तीन लोंक के सुरपति पाई । श्री जिन के सेवेंगे पाय ॥१४७५।। नरपति पगपति दानव देव । ए सब प्रानि करेंगे सेव ।। पंचग्यान कर त्रिभुवन पति । धर्म प्रकासि पंचमी गती ॥१४७६।। सुणि पिर जयण हीये सुख भया । अंचल गाठि बांधि के लिया ।। श्रावण बदि दोइज सुभ घडी । प्रभृजी प्राय गर्भ थित करी ।।१४७७॥ आसरण कंप्या सुरपति इन्द्र । अवधि विधार किया प्रानंद ।। श्री जिन देव तों अवतार । उतर सिहासरण कियो नमस्कार ।।१४७६।।
फूटी जम तब लिये बुलाइ । नगर कुसागर बेगा जा६॥ छपनकुमारी देवि पठाइ । गरम सोध लणं प्रभा ॥१४७६।। रतनवृष्टि फूलों की दृष्टि । जे जे करत भये अघ नष्ट । देवी सब मिल सेवा करें । गत दिबस टारी नहि टरै ।।१४८०|| जैसे रवि बादल की छोह । इम गरभ माहि दंप जिगशाह ।। स्वाति बूद पर दमके पत्र । श्री भगवंत पहा पवित्र ।।१४८१॥ बसाख बदि दसमी सुभवार । श्रवण नक्षत्र भयो अवतार ॥ सरपति संग अपरा घणी । प्रेसपति साज्या विधवणी ।।१४।।