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मुनि सभाचंर एका उनका पन्मपुराण
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राजकुमार के द्वारा वैराग्य
रागकुवर तर पाय सों कहें । तेरे मन की चिता रहै ॥ जो कोई तोसु बोलें बुरा । ताकी रमना खंडु छुरा ॥१५६।। असंतमाला इम कह समझायं । तुमारा पिला भया मुनिराय ।। वह आना था लेण प्राहार | माता तुमरी साई मार ॥१५६६।। वासों राज भोग बन किये। जिसकी दया न पायी हिये ।। प्रांगा वसाए मिश्यमती। पुर में कादि दिये सब जती ।। १५७०।। तुझ को निकसण दे नहीं द्वार । बांधि राख्यो तु कारागार ।। ता कारण में किया रुदन । इम सांभल नप मोडमो बदन ।।१५७१॥ असं रात्रि महला परिजाय । डोरी बांधि तलें उतराय ।। तिहां मुनिवर वैठा था एक । दई प्रदक्षिणा आए विवेक ।।१५७२।। नमस्कार करि बारंवार । बहुत प्रकार कीन्ही थुति सार ।। जनम जरामृत ओलं जीव । चिरकाल की गाढी नींव ।।१५७३।। च्यारौं गति में डोल हंस । कहि नीच कभी उत्तम बस ।। रोग सोग प्रारति में फिर । बिन समकिन भव सायर पई ।।१५७४।। प्रभुजी मो पर कृपा करेइ । मद दघि तार मुकति पद देइ ।। मंत्री मिले प्राय सब पासि । समझावै विनती मुख मासि ॥१५७५।। यव लग थे सुम बाल प्रवेश । अब जोबन तुम भए सचेन ।। हम संसय टूटण की बार । तब तुम ल्यो हो दीक्षा भार ॥१५५६।। कुल माहि कौन छै कुमार । ताको राज सौंप हो सार ।। पिता तुम्हारे अब दिक्षा लई | महीना लणं सुन को मुदई ॥१५७७:1 अब तो तुम मुगतो ये सुन्न । चित्रमाला पावं है दुःख || याकै बालक नाहीं कोइ । ता की गति कह कैसे होइ ॥१५७८।। जब संपति हो तुम गेह । तुम तब करो दिगंबर देह ।। बोले भूपति वचन बिचार । चित्रमाला के गरम का भार ॥१५७६।। बाकं पुत्र होयगा वली । पूरंगा सब की मन रली ॥ वाको मैं दीया सब राज । जब वह जनमें तब सारी काज ।।१५८५।। इतनी कहि लब वसन उत्तारि । किया लोंच सिर केस उपारि ॥ ल्याया निदानंद सों ध्यान । गुरु संगति पाया बहु ग्यांन ॥१५८१।।