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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
दंपति पिछला बर सु लो वाल्या श्राकास
मुलगा ॥११४५८६११
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हूं पूर्वे थो वाणियों तू पुथ्वीपति भूप ॥ सत्र जो तू
दया के भाव
बल करें, हुं लडू जुध के रूप ।। १४५.६ ।। चौपई
देव होकर पूर्व भय की अपनी स्त्री को दुख देना
दंपति को दुःख दोने घो। सुर का क्रोध कहां लगगि १३ गहिहि गया उछालि । धरती पडतां फैले स्माल ।। १८६०।।
कहै समुद्र में देहु बुडाइ | कैले धरू सिला तलि जाइ || के या मोंड करू चकचूर । नखसिख तोडि मिलाऊं धूलि || १४६१ ||
दूहा
बहुत त्रास उनको दिये, उपनु जाती ग्यांन ॥
पूरब में पाली दया, तो सुर लह्यो विमान ॥। १४६२॥ चौपाई
जो अब इनकी हत्या करू । नोतम पाप श्राप घट भरू ॥
जं मानुष करें कोई पाप । जप तप करि निज हरं संताप || १४६३ सा
मेरा दोष टलें प्रखरीत राखुं जीव दया सुं प्रीत ॥
लोड दंपत्ति प्राणी दया 1 नारि पुरुष मन आनंद भवा ।। १४६४ ।।
वृहा
चंपापुर क्षिरण दिसा, छोडें दंपति जाय ।
हरिणिपुर को नृप थयो, हुवो प्रताप अधिकाय ।। १४६५ ।।
चौपई
१६७
जन्म्यामांनी महागिर हर्ष ।।
हरवंसी जनमिया कुमार ।। १४६६१
राज करत बीतें बहू वर्ष महा प्रताप प्रगट्या संसार हिर्मागर बसु गिर पीछे भए । महीधर आदि पुत्र बहु थए ।। केई स्वर्ग देवगति पाई । केइक मुक्ति विराज्या जाइ ॥ १४६७ ।।
बहुतै नया बसाया देस हरिबंसी चहुं भए नरेस ॥ सीतलनाथ का दरसन किया। हरिराजा का समए भया ।। १४६८।।