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पापुरगण
दोन्यु की इच्छा फली, कियो जुगति सों भोग 1 जसे दुखिया मानवी, मूल रुख वियोग ।।१४४७।। बीती निशि सूरज उदय, दंपति कर स्नान ।। सुमरै श्री भगवंत की, मुनिबर पहुंता प्रान ।।१४।। उठि द्वाराप्रेषण करयो, मुनि को दियो प्रहार ।। दंपति वह विनती करी, जिम थाये निस्तार ।।१४४६।। जाप करत तस भूमिप, पडी वामनी याय 11 वे दंपति दोउ मृवा, थिजसार्द्ध उपजा जाय ।।१४५० ।। उत्तर श्रेणी हरिपुर नगर, तहां पक्म गिर भूप ।। मृगावती राणी उदर, जनम्यां सुपम स्वरूप ।।१४५१।।
अडिल्ल पूर्व जन्म
हरि विभ्रम घरा जातिगी विन ने । दिन दिन बई कमार मराजा केतु ने ।। रुपर्वत सोमंत सुख परिवार में । दान सुपात्र सहाय भयों संसार में ।।१४५२।। गेघपुरी को नरपति ताकी अस्तरी । वनमाला का जीव गर्भ तमु अवतरी ।। मनोरमा धारधो नाम जोतिगी त्रि में । रूप लक्षण सामोद्रक काह तमु तनँ ।।१४५३ । जोवनयंती देखि हरि विभ्रम को दई । लगन घडी सुभ माधि विन चौरी छई ।। रहम रली सों व्याह रह रंग प्रीत गरें । फूलन की कर रोज में सुख रीत सौं ।।१४५४।।
बोरक सेट की तपस्या
बीरक सेट उठि हाट तें, पायो गेह मंझारि ।। चिता चित उगजी घणी, लिहां न पाई नारि ।।१४५५।। घर की सुधि सब बीसरी, टू घर घर जारि ।। कहीं न पाई अस्तरी, जती भयो तिण धार ॥१४५६।। करी तपस्या जुगति स्यों, लही देवगति जाय । उपनी अवधि इक भवतणी, हदभाव सौ प्राय ।।१४५७।।