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पुनि सभाचंच एवं उनका पपपुराण
जाको वस्तु लटि में गई । ताकी ताहि मंगाय करि दई ।। रावण में सब दई असीस । तेरो भलो करो जगदीस ॥१५१४।। रावण फिरि लंका में गया । सुदरमा सहज ही लिया ।। जे जे राबद करै संसार । धरण किये बहुते नमस्कार ॥१४१५।। मैं तो चुक करी थी धणी। कछुवन मावे कहतां बणी ।
मैं तो अधिक मूढता की । तुम्हारी भाग्या चित्त न धरी ।।१४१६।। वरण को पुनः राज देना
वरूगा म्य तव दीना छोडि । बंधए सफल दिये नृप तोहि ।। वरण फेर करि पायो ग़ज । रतनदीप वा सारघा काज ॥१४१७।।
चन्द्रनग्या को महाप्रभा पुत्री । हनूमान ब्याही सुभ घरी ।। वानर वंशी राजा वर्णन
अपनां पुहपथी नगर शुभ देस । हनुमान कुदिया नरेस ।।१४१८।। किंपपुर का राज नल नौल । श्रीमालणी रांणी सुभसील ।। श्रीजयंता ताकी सुता । हनुमान कुदीनी मुखलता ॥१४१६।। विजयारच गिर किन्नर गीत । कन्यां बाकी च्याही सुभ रीत ।। विधपुर र हैं सुग्रीव । सुतारा पतनी धरम की नीय ॥१४२०।। भावमंडला पुत्री ता गे । रूपन क्षरण करि सोभ देह ॥ कन्या बडी सयानी भई । राजा के मन चिता श्रई ।।१४२२।। कहै स्वयंवर छाडं आजि । देस देस के भूपति काज ।। जा गन्नु बान्या छान्दै माल । कन्या मो व्याहै भूपाल ।।१४२२।। राजा मना विचार भन्ना । देस देश को त्रितेरा चला ।। पूतली लिली सबै को जाइ। जहां लग थे प्रध्वीपति राय ॥१४२३॥ महां तहां के राजकुमार । चितेरे लिस्त्री सुरति मवार ॥ हनुमान भी लिखी फूतनी । समझि हाइ प्रति सौंपी भली ।।१४२४॥ देशी भाव सकल मंडला । हनुमान उपरि चित चल्या ।। राजा बाकी मृरति लिखाय । हनुमान पं दूत पठाय ||१४२।। गया दूत जे हशुमंत । रुपलक्षण का नाहीं मत ।। दीया पटले वाक हाथ । किया 'पयाना दूत के साथ ।।१४२६॥ तिहां नारि होमै मथमंत । जहां जाय निकस हणुमंत ।। भामंडला नप दई पठस्य । भोग भूमि नप करें उछह ॥१४२७।।