________________
मुमि समाचन्द एवं उनका पपपुराण
चौपई
१८को विधानक धरण द्वारा रावण से युद्ध
वरगा मुगी पतंजय मह त्याग ! लोड़ि कट व वन में गये भागि । अब मैं भुगती निरभय राज । रावण सौं क्या अटका काज ।।१३८७।। रावण का कछु भय नहीं घरू । अब मैं पकडि बंदि में करू ।। रावण सुरशी वरण की बलि । महाकोप उपज्या सब गात ।।१३८८।। देश देश को दूत पठाइ । सकल भूपत्ति लिया बुला बुलाइ । दोइ सहस्र अषोहिणी दल बुड्या । वाजंत्र वाजै मारू पुरघा ॥१३८।। वज दमामा प्रर सहगाहि । मधपुरी को घन घेरी जाई ।। भेजा दूत हनुरूह देस । पचनंजय को दिया संदेस ।।१३६७।।
पवनंजय रावण की मांगि। चल्या देखि बेग्य। फरमान ॥ हनुमान द्वारा युद्ध में जाने की इच्छा
नब हणुमंत कहै इण भांति । मौकू माग्या दोजे तात ।।१३६१॥ मेरा तुम देख्यो पराक्रम । होइ सहाइ तुम्हारा धर्म ।। पुत्र अयण सुणि हंस्या पवन । पुत्र कीया तहां गवन ॥१३६२॥ सेना बहुत लई तिन साथ । त्रिकुटायल देखि छिप्यो दिननाथ ।। तिहां उतरि के प्राश्चम लिया । भया प्रभात पयाणां किया ।।१३६३।। संवरण पास गया हणुक्त । देश्या ताहि बहुत हर्षवंत ।। बहुत प्रति थी बॉल भूप । वाका देख्या अधिक स्वरूप ।।१३६४|| वाकी कथा कहैं सब लोक । पर्वत परि पत्या माता भया सोक ।। पुन्यवंत के लगी न चोट । परवन गिला भई सब षोटि ॥१३६५॥ सिला फोहि टुझाडे करे । हगौंमान जीक्त ऊबरे ।। बहुत सिरावै रावण राय । पवनंजय भली करी बहु भाय ॥१३६६॥ अंसा बली भेजा मुझ पास । पूरंगा मो मन की आस ।। खेना देखी नाना मांति 1 केई सरह की उनकी जात ।।१६६७|| 'रतनदीप घेरचा चिहुंकोर । बरग राय पाया चढि भोर ।। सकल पुत्र प्राए बढि संग । मारू सुरिण कातर खित मंग ॥१३६८।। मुरवीर मन कर आनंद । दुचां सुभट कर चद बंद ।। गक्षमपंसा दिये अहराइ । बानर बंसी बोले राइ ।।१६