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१यपुरण
प्रति सूरज बोल हंसि बात । हूं बुलाऊं पवनंजय इक भांति ।। तब सई बोल बेग बुलाय । तीन लोक में होद जस नांव ।।१३७४१ प्रति सूरज पवन किंग जाय । प्रथम भेद भाथ्यो समझाय ।।
और सव बात गुफा की कही । पुत्र जनम सुण रहस्या मही १२३५ मुनि केवली गया था जान । वन में नारि देवी विलालात ।। दया निमित्त मैं तहां प्राइया । भागाजी कु विमाग परि लिया ।।१३७।। अंसी मुणि मन प्रानंद भया । सब ही का संसा मिट गया । बहरि कथा वालक की कही । रूप लक्षण वा सम कोई नहीं ॥१३७७।। रवि नै देखि बालक उछल्या । तिहां ते आइ परबचन परि पइया ।। बहुत दुख चित चिता भई । हमारी सेन्या मगली हई ।।१३७८ ।। बालक की सुरिंग रोब पौन । हाई हा कर सब होन ।। प्रति सूरज तब बोर ज । बालक जाना नही पान ।।१३.!! सिला फूटि थई चकचूर । पुण्ययंत्र के लगी न मूर' ।।
गूठा चूप खिलक स्वरा । पुन्यवंत बालक तिहां परा ।। १३८० ।। लिया गोद अंजनी कु दिया । हनूरह में प्राथम लिया ।।
सेना सहित हनुम्ह गये । मब राजन को भोजन दिये ।।१३८१।। जना पचभंजय सिलन
मास दोय को सकस नरेस । बिदा मांगि पहुये निज देस । पवनंजय अंजनी सुख के भाव । पुत्र तणां घरया हणुमंत नाम ।। १३८२। कामदेव हैं सब त बनी विपकी कसा जगन में चली ।। हमान का सुणं चरित्र । धन संपति बहु लहै पत्रिष ॥१८॥ सुणि पुराण जे निश्चय धरं । काटि करम भव मायर तिरै ।। रवि प्रकास नै भये प्रघर । पावं मोक्ष नास भव फेर ।।१३६४।। जाय मुगति में निरभय और । अावागमन न होय बहोर || दरसन ग्यान तब लहैं अनंत । बलबीर्य का नाम अन्त ।।१३८५।।
चरित्र सुरण हनुमान का, धरै परम दिढ चित्त ॥
निश्चय पावै परमपद, होइ मुति की थित्ति ॥१३८६।। इति श्री पद्मपुराणे पवननय अंजनी मिलाप विधानकं ।।