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पपुराण
प्रहमित मित्र बहु विनती करें । तुमने छोडि जाउ किरण गरे ।। अंजना की तलाश
भरतक्षेत्र हूँ सब देश । अजनी पाच कोई नरेस ।। १३४७१। पवनंजय विदा मित्र ने दई । हस्ति परि चढि गोधगा लई ॥ चन परबत देखी बहु ठौर ! रुदन कर पीढ़ कर तौर |! १३४८।। पचडी घटकी कर पुकार । कपडे तनके फाडे डार ।। इस वन में वह कोमल देह । वन भय देखि भई मर षेह ।।१३४६।। कं वह दुष्ट मिनावर गही । के विद्याघर ले गया मही ।। के उन दीक्षा लीनी जाह । अन्न पांगी बिन मुरझाय ।।१३५०।। में भी मरू याहि वन वीचि । ऐस दुखनं पाली मीच ।। हस्ती मती भगा कुमार | तु फिर जाह पहलाध के द्वार ।।१३५१।।
गन्न प्यास तू दुनिया होइ । मेरा दुख जाग नहीं कोई ।। प्रहलादराय को पधनंजय का संदेश
प्रहलादराय सों इम जाय कहो । पवनकुमार अगा में नायो ।। १३५२।। हस्नी लि रुदन प्रति करै । शासि पासि कुवर के फिरः ।। प्रमित गया जहां प्रहलाद । पवनंजय वचन के पुत्र प्रादि ।:१३५: ।। वह अंजनी बिन तर्ज परांरग । मैं तुम खबर करी यान ।। राजा सुणते खाई पछार । रोवै पीदें सब परिवार ।।१३५४।। कैतमती आई सूणि सोर । प्रहमित बातां कही नहोर ।। कोतुमती रिस' करी अनंत । ल व पापा छोडि तुरंत ।।१३५५।। केस खसोर्ट कूट हिया । सब टियरण दुख अधिवा किया ।। तिनका दुख बरण्या नहीं जाय । असे सफल लोग बिललाइ॥१३५६।।
सीलवती कुदिया कलंक । इन क्यों व्यापी अंनी संक ।। अंजना की तलाश
देषा देश के पेपर प्राइ । प्रहलाद में बात कही समझाय ।।१३५७।। पवनंजय प्रजनी ढढे जाय । उनको तम प ल्याई राह ।। पर जो आई महुंच नहीं । पत्री लिखी प्रति सुरज जही ।।१३५८।। भेज्या घुत प्रतिसूरज पास । उनी बात कही परकास ।। पचन प्रजनी के कारण । मापण दुख कीने घणे ॥१३५६।।