________________
मुनि समाचंद एवं उनका पद्मपुराण
१५५
पराक्रमी एकाभव मोक्ष । अंसा पुत्र भया तुझ कूषि ॥ अब अपणं मन करी पानंद । यह बालक जसे भुवि चन्द ।।१६०८।। रक्षा बहुत बरंगे देव | देवांगना करेंगी गेव ।। विद्याधर स्त्री संयुक्त । गुफा दुनारे प्राय पहूंत ।।१३०६।। विद्याधरी बालक विंग गई । देख बदन बलिहारी लई ।। प्रति सूरज रहा बारही ठौर । जहाँ देवता बैठे और ॥१३१०।। बसंतमाला मन चिता करें । मत कोई दुरजन बालक हर ॥ निकलि गुफा में बाहर याइ । विद्याधर विंग बैठी जाइ ।।१३१३।। नप पेचर पूछ विस्तांत । तुम क्यों रहौ वन में इण भांति ।। तुम अपरणांगना भेद ।
होना अहम ।। १३१२।। खेचर के प्रश्न का उत्सर
पिछली बात कही समझाय । इह है सुता महेन्द्रराव ।। भनोवेगा गर्भ ते भई । प्रहलाद राय के सुत परणाई ।।१३१३॥ इस पयनंजय की अनवरी। नाईम बरप वियोग में पड़ी ।। रावण के कारन को चल्य] । चकवी वियोग देख फिर मिन्या ।:१३१४।। मात पिता श्री मिल्या न कुमार । एक रात रह गया तिक वार ॥ केतुमनी है कई निकाल : याकी किनहि न करी समार ।।१३१।। ताधी आई गुफा में रही । सर्वकथा ब्योराम्यूकही ।। मुनिवर पामि मुणे परजाइ । किये करम सो मुगः काइ ।।१३१६॥
बसंतमाला जब पूछ बात । अपणां कहो नाम कुल जात ।। खेचर का परिचय
विजयार, उत्तर दिस पोर 1 हनुम्ह नगर बस तिह ठौर ।।१३१७११ विचित्र नाल तिहां भूपती । सदमानण राणी सुभमती ।। प्रतिमूरज है ताको पूत । ठोस सकस कमा संयुक्त ॥१३१८।। अंजणि सुणि हिय मह भरी । मामा सो बोली तिह घरी ।। कंठ लगाय स्वन वरि मिली । वसंतमाला छुडाव मन रली ।।१३१॥ नीर आणि परझाल्या मुख । दोन्या हीए भयो अति सुख । थारु संग नाम जोतगी संघात । तास्यु पुछी जनम की बात ॥१३२०।। कैसी बडी जन्म्या रह पूत । कवरण कवरण लक्षण संयुक्त ।। चैत्र बदि प्रा अधरात्रि । श्रवरा नक्षत्र जदय शशि क्रांति ॥१३२१।।