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भुनि तभावंद एवं उनका पयपुराण
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मैं तो महापाप इह कियो । प्रतिमां ले जल में राखिगो I लक्ष्मीमनी न्हाई ति बार । प्रतिमा पूजि करि लिया श्राहार ।।१२८।। कानकोदरी कु चिता भई । वाही समै राजा पं गई ।। . जो प्रभुजी मुझ प्राग्या गोह । तो मैं अब संपम व्रत ल्यौह ।।१२८१।। राजा की प्राग्या जब पाय 1 श्रीमती अजिका पास प्राय ।। विनती करि चरगान को नई • भीमाँ गंमो यूल जो भई ।।१२८२॥ दिक्ष्या देह ज्यों छूट पाप । जो तप किये मिटे मलाप ।। दिक्ष्या दई जिनवाणी कही । रापारूद व काया देही ।।१२०३।। तप करि किया करम का घात । देही तजि पाई सुर जात ।। इन्द्राणी थई सौधर्म विवरण । हां ने भई तू अंजनी मागि ॥१२८४॥ बाईस घडी जिन प्रतिमा हरी । वाईस वर्ष ही प्रापदा सही ।। अगछाग जल प्रतिमाधरी । वनमें पग उगाहरणे किरी ।।१२५५।। सुणी धरम उपल्या वैराग्य । मुनि के उठि चरण में लागि ।।
मैं गर्म तें हो निर्वृन । दीक्ष्या लेई करूं शुभ व्रत ।।१२८६|| पुत्र जन्म को भविष्यवाणी
बोले मुनियर ग्यान विचार । तेरै होई पुत्र अवतार ।। रामचन्द्र लक्ष्मण का मित्र । बहुरिज कर परम की रीत ॥१२८७।। कामदेव महा बलवंत । ताका नाम होसी हनुमंत ।। पयनंजय से फिर संयोग । बहुत बरस मुगतेंगे भोग ।।१२८ ।। तेरे असुभ करम सब गये । मुख अनंत देवगी नए । व्यौरा सुध्या किया नमस्कार । बेटी अाय निज गुफा मझार ।।१२८६।। मनमें रहसि भई अलि । चित में राषे मुनि के बोल ।। यत्र चिता तब ही मिट गई । प्रमटया तिमिर रजनी जब भई ॥१२६०॥ दुष्ट जीव हैं वनमें घने । महा भयानक शब्द है सुने ।। दावानल सा बन सब जलं । गज टक्कर तें परवत हिल ।।१२६१॥ झाई सबद तें गुजे गुफा । भव ब्यापं नहीं जीव में कुफा ।। बसंतमाला अंजनी बिललाई । सोवं धरती पात बिछाइ ॥१२६२॥ असे दुगत मौं बीतं पड़ी । इक इक पलक बरस सम दरी । एक पहर अब बीती रयन । यां सेन्या के हिये अचल धन ||१२६३॥