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मुनि समानंद एवं उनका एमपुराण
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चलती बेर किया संजोग । ऋतुमती ने दिया विजोग ।। पाई ही हुभा सहा । असुभ कर्म उदय भया प्राइ ॥१२५१॥ मैंस करम सब ही कु लगे । बोई नाहि करम ते भग
अंजनी बसंतमाला सुप चहै । थी मुनि सब आगम की लहै ।।१२५२।। बसंतमाला द्वारा पति वियोग का कारण पूछना
बसंतमाला पूछे कार जोडि । बात हमारी कहो बहोरि ।। कैसा जीव गरम किम पड्या । कठिन पाप करके अवतरचा ।।१२५३।। किम वियोग हम को इह भया । पूरव पाय कवण हम थया ।। वोले मुनिवर लोचन ग्यांन । पुन्य जीव गरभ भयो प्रांनि ।।१२५४॥ पाको दूसण नाहीं कोइ । अंजनी पाप उदय त होइ ।
महापुनीत धर्म की देह । चरम सरीर पुष तुझ गेह ।।१२५५॥ मुनि द्वारा समाधाम
हनमान होसी तुझे पुत्र । कामदेव बलवंत बहुत ।। उसका भव पूरबला सुणौं । रोग सोग मन को सब हणों ।। १२५६।। जंबू द्वीय भरत क्षेत्र आहि । अमितगति नगरी ता माहि ॥ मंदिर अभिप राजा धरमिष्ट । नंदीनमें सम्यक दृष्टि ।।१२५७।। जया देवी स्त्री ता गेह । मी पुत्र की मोम गेह ।। रितु बसत खेल सब लोग । नंदन वन में बृक्ष अशोक ॥१२५८।। रागरंग गार्ने सब और । सकल जगत में सूख का सोर ।। विद्याधरी जोषिता घी । चली जात आकास गामणी ।। १२५६।। देखि दमैं दौडया प्राकास 1 मुनियर निरष गई ता पास ॥ नमस्कार करि पूछया घमं । जुरणे वचन ते लागे मर्म ।।१२६०॥ एक दिन मुनि को दिया आहार । विनययंत होइ कीनी सार ।। नित उठ रार्ष मातम पान । अत समं पढ़ पंच प्रमु नाम ॥१२६१।। देही तजि गया सौधर्म विवान । भया देव पाया सुख ठाम ।। व्हां ते चय मृगांकपुर देस । सूरज चंद्र तिहां राम नरेस ।।१२६२।। प्रीय अंग ताकै पटधरणी । सिंघ रथ पुत्र सु सोभा वणी। समकित पुरण भमा काल । उपनां जाय स्वरगपुर वाल ।।१२६३।। विजयारध तहां परननदेस । सुकच्छ नाम तिहां तणों नरेस ।। कनकोदरी राणी सुदरी । बनवाहन पुत्र भया सुभषही ।।१२६४।। जोमन समै विवाही नारि । वीतें निस दिन भोग मझारि ।। विमलनाय स्वामी अरिहंत । निरवाए गये 'श्री भगवंत ।। १२६५॥