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पद्मपुराण
मैं सेवक विन कर जोडि । मेरी मिस न प्राण पोडि | कोस प्यार जब नगरी रही। भई रय वन आश्रम गही ।। १२०सा अंसा दुख प्रजनी कु भया । देखि रुदन दिनकर लोपिया || इह सब दोस करम की देव | ऊंचे नीचे उसास बहु लेइ ।। १२१ ।। गरज सिंह हस्ती सिंह ठौर | वन में करें स्थाल प्रति सौर ।। इनका दुख देखि सब पंछी रोवें । पात विखाइ भूमि पर सोवें ।। १२११।।
इक दिन बीतें बरस समान । मनमें सुमरें श्री भगवान || वसंतमाला की जांघ पर मूंड | वन भयदायक दीस सूट ।। १२१२ । कठिन कठिन वह्न पीडित भई तब क भय चितलें मिट गयी || सुमरे जिनवर बारंबार । असुभ करम के टारन हार ।। १२१३।। दूहा
धरती पांव न जे घरं, सोवं सेझ अनूप ॥
बनमें निस दुखस्यों कटी, पांव चली भरि धूप ।। १२१४ ।। चौपई
जना का महेन्द्रपुरी जाना
भ प्रभात महेन्द्रपुर गयी। पिता द्वारि जाइ ठाली गई || पीलिया भीतर जारण न देइ । वसंतमाला ताहि जंपेइ ।। १२१५।। वह अंजनी राजा की घिया । याक असुभ करम दुख दिया || मसेन को सुधि देहु । तेरी सुला आइ तुझ गेह । १२१६।। सिलकपाट पौलिये का नाम । पहूंच्या राज सभा की ठांम ॥ नमस्कार करि भाषी बात | अंजनी आई आज प्रभात ||१२१७।। प्रीति को दिया उपदेश । श्रादर सों कीजे परदेश | नगर छवावो हाट बजार । बहुत भांति कीजे मनुहार ।।१२१८ ।। तब प्रकरूर कहै समझाम । मेरी बिनती सुनिये राय ।। केतुमती यह दीनी काहि । उनके चित ए चिता बाकि ।। १२१६ ।।
बाईस बरष ब्याह कौं भए । पवनंजय निज मंदिर गये 11 पवन गया रावण के काज । इन ल्याई दोन्यु ं कुल लाज ।।१२२०|| याकु भई यरभ की थिति । तुम राखो जे श्रा चित्त । पिता द्वारा निष्कासन
इतनी सुरात
कोपिया भूप | रक्त नयन पर क्रोध के रूप ।। १२२१ ॥