________________
मुनि सभाघर एवं उनका पमपुराण
११३
राजा वसु ने लेहु हंकार 1 नरक छोडि पाव इस बार ॥
ह्या ते उठि मुकलि नै चलें । तो जग दाह जागौं मैं भने ।।७३६।। नारन पर उपवर्ग
जग्य करपा राज मनवसीकरण 1 विषय पंच इन्द्री का हरण ।। संतोष विन नै दक्षिणा दई । केश लोचनां क्रोध करेई ।।७४।। ध्यान प्रगनि मैं जाल कम । इस विष होम किये है धर्म 14 विप्र संन्यासी उठ्यो रिसाइ । नारद परि सब पाए धाय ।।४।। कोई मूकी कोई लात । नारद मुनि सारयो वह भाति ।। नारद के मन उठयो अहंकार । गही सिला सब उपरि मार ||७४२॥ बे भनेक इहां एक सरीर । इस विध परी नारद पर भीर ।। पकड लिया दोल परब ! सास जलास
माथि १७:३।। पापी मिलि दुख दिया बहुत । रावण का तिहां प्राया दूत ।। देखा वाडा पसू अति जीव । नारद ऋषि की बांधी ग्रीव ।।७४४।। सो देखि उपसर्ग सो पाया फिरपा । देख पाप मन कोप्या खरा ।।
हिंसा धरणी कही नही जात । रावण सों कही रिष की बात ।।७४५।। रावण द्वारा मारव को सहायता करना
रावण सेना तहा पठाइ । कही मरुस ने बांघो जाइ।। बाजै मारू दौडे सूर । दसों दिसा सु रही भर पूर ||७४६।। बाडा तोडि पस सब छोडि । नारद ऋष के बंधन तोद्धि । राजा मरुल बांधि महै लिया । विप्र संन्यासी घका दिया ।।७४७।। भाग्या प्रेसी रावण दई । ए सब मारो पानी सही ।। ए पापीष्ट पाप का मूल । दया भाव इण के नहीं सूल ।।७४८।। इनहि मारि पोउ अवषोज | फेरन होय पाप का चोज ।। जीव विपास बतावै घरम । अंसा करें मीच का करम ||६||
इनके मारे का नहीं पाप । ए जीवा में मारे ग्राप ।। मारिइनन परलय करू । इनहि बैंग तुम पहबट कारखं ॥७५०।। नारद मुनि चित मायी दया । रावग में उपदेस इम दिया ।। ए वांभरए उत्तम कुल भले । रसचा लंपट कुमारग चले ।।७५१।।