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मुनि सभाचंद एवं उनका पपपुराण
उन कयलास छत्र सिर लिया । बधवरण जम को दुख दिया । बनसाल गढ़ लिया छिनाय । बहुत भूपती साधे जाय ॥१७३ । सुम वासों किम सर भर करौं । रुपणी कन्या दे क्रोध परिहरी ।।
अपणो कीज्यो निरभय राज । निज बल समझ कीजिये काज ॥८७४ इन्द्र द्वारा कोष करना
तबै इंद्र बोलिया रिसाइ । पुरखा भय बुधि सब जाय !! जे छत्री भरने से डर । तेवौं नरक निगोदी पर ।।७।। मैं केहरि वह वंती पाद । भाज देखि सींघ की छाइ । मैं अब लग कीनी है गई । वाकों बुधि मरण की भई ।।८७६।। सूरवीर सब लिये बुलाइ । देस देस के प्राए राय ।। हय गय रम साजे तिहाँ घने । मब सामंत देव से बने ।।८७७॥ संबी धनुष लिये बह वाण । जम धरम हुग भले नीसांन ।।
लाख पचास हस्ति चल डोर । माग वान पारी पोर ॥२७॥ रावस को सेना
उनतें रावण सेन्या साजि । निकस्यो युद्ध करण के काज ॥ वानर बंसी राक्षस बंस । धरणे भूपति उत्तम अंस ||८७६11 दैत्यनाथ परदूषण भूप । वेश देश के सुभट अनूप ।। सब सामंत मन माहि मडोल । पालें अपने प्रभु के बोल ।।८८०॥ पचपन लाख डोरि गज चले । प्रस्त्र अनेक सौभ तिहां भले ॥ ग्यारसय छोहरिग दल संग । सिलह संजोग बने सब अंग ।।८१॥ दोउं सनमुख दल भये पाय । दोनू तरफै धुरे नीसांग ।। छूटें तीर तुपकहथनार । जैसे घर पनहर धार ।।८८२॥ दुहुधां लई सूरमा बली । दोयु सेन्या बहु विध दलो ।। राक्षम रूप लडे विकराल । बानर बंसी सब मुख साम ।।८५३॥ देखि इन्हें भय उपजे घनी । देव जेम विद्याधर गुणी ॥ मार खडग मुंउ गिर पड़े । मुड मुड बहु लडते फिरें ।।८८४॥ मही इन्द्र सेनापति तिहंदार । भई भभीषण स्वों तरवार ।। सेनापति अझ भुई गिर्या ! श्रीमाली तब ऊपर की ॥८॥