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मुनि सभाचन्द एवं उनका पद्मपुराण
कूडल सो दोन्युं करणं। बड़ी आव भुगतें सुख सर || जैन धरम सौं राख प्रीत । सतत धरम की पालें रीत ।। १०५६।। नित उठि द्वारा पेषरण करें । जनम जनम के पातिग हरे ॥ मुनिवर क विषयों दे दान । यहाँ भेय का रा मान ।। १०५७ ।। बारह सभा सुविध धर्म । अशुभ भाव के टूटै कर्म ॥
ई भूप दिगम्बर भये । किनहीं व्रत श्रावक के लिये ।। १०५८ ।। जैसा वित तैसा ले व्रत । जनम जनम का दुःख जहन्त ॥
रावण द्वारा व्रत ग्रहण
वसों बोले भगवान तू ले व्रत कटु निश्चय आन || १०५६।। रावण सोच हिया में करें। सीलवन्त की इच्छा घर ।। परनारी सेवें अग्यांन | पावैं अंत दुख की खांन ।। १०६० ।। जैसे स्वान ले बम्बां प्राहार। जैसे विषई झूठ गंवार |
द्वार दुगंध निवास । सहि देख मन होत उल्हास ।। १०६१ ।। मेरी तीन खंड में प्रां । मां बरत स नहीं जारण || एक भांति व्रत पाली सही । जे नारी मुझ इच्छे नहीं ।। १०६२ ।। तांका सील पंड जाइ । इहे वरत मुख बोलवे राइ ॥ श्री जिरा पास नेम इहलीया । आमैं को फल दाता भया ।। १०६३ ।। कुंभकरण भभीषण व्रत लिया। करि डंडोत यांगा किया || आए लंकासह परिवार करें धर्म मन हरष प्रपार ।। १०६४ ।
चन्द्र धरोन्द्र सुरयानक गए। श्री जिनवाणी सुमरे हिये || सत्र के मन का संख्य गया। परम प्रकास जगत में भया ।। १०६३ ।। डिल्ल अनंतवीर्य भगवंत धरम बहुविध कह्यो ।
सुषम भेद प्रगाम सुरत सब सुख लह्यो ।
व्रतधारी भए भूप मोक्षमारग गए । भवसागर लें जीव उतरि शिवपद लाए ।। १०६६॥
इति श्री बापुर श्री अनंतनीयं धर्म व्याल्याण विभाग 21 पन्द्रहवां विधानक चौपर्ड
हनुमान का जीवन
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इहां कि कीया परसन्न । हनुमान की हो उत्पन्न ॥
श्री जिनवाणी दिव्य ध्वनि होइ । बारह सभा सुख सब कोई १०६७।३४