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पमपुराण
गौतम स्वामी निरग भएँ । सभामध्य पंणिक सुणे । विजयारध दक्षिण दिस ओर । प्रादितपुर नगरी तिही कोर । १०६८ राय प्रहलाद नगरी को धणी । केतुमती राणी तुम तणी । पवनंजय पुत्र भया शुभधरी । पल पन बढ देह गुण भरी ।।१०६६॥ गर्यत सम वेसपुर पेस । महेन्द्र विधाघर तहां नरेस ।। हवनवेगा राणी सुदरी । सो पुत्र जनम मुख करी ॥१०७०।। प्रथम अरिदमन दुजा उत्पाद । अंजनी सुदरी पूनम पांद ॥ रूप लक्षण गुण महा प्रवीण । सोलह भात बजावं बीण १०७१।।
छहों राग पर तीस रागणी। विद्या पड़े सरस्वती वसी॥ प्रजना के विवाह को पर्वा.
राजा महेन्द्र तब मता उपाइ । मंत्री चा लिये बुलाइ ॥१०३२ अमर सागर सों मता विचार । कन्या बडी भई इह बार । उत्तम कुल जे राजकुमार । तिहां लगन भेज्यो इस बार ||१०७३।। प्रमर सागर बोल्या मंतरी । रावण की कीसं है खरी ।। असे सुकीजे सनमंघ । राक्षसबंस ज्यौं पुनिम चंद ॥१०७४।। इंद्रजीत दूजा मेघनाद । वेद पुराग बजावं नाद । पराक्रमी वे चरम सरीर । मौभमार्गी एका भव तीर ।।१०७५।। असे उसके महा सपूत । कन्या देहु सुख होइ बहुत 11 सुमति मंत्री फिरि दूजा कहै । मेरे मन इह संसा है ।। १०७६।। रावण के घर इतनी नारि । पटरांणी सोलह हजार ।। कुमरां कहैं बहुत मस्त्री । एक एक सेती गुमभरी ।।१०७७।। उस धरि कन्या दीये नहि वर्ण । श्रीपेन राजा गुण घने ।। चरम सरीर प्राक्रमी बली । उकौं देह होयगी रली ।।१०७८॥ तारा धर मंत्री समझा बैन । कनकपुर नगर सोभा है मंन 11 हिरणनाभि राजा तिरा ठाम । तस पटरानो सुमना नाम ।।१०७६॥ सौदामनि तास उम्र भया । मोक्षगामी सोमें सुभ कवा ।। वाके गुण का पार न कहीं । अमाबली भूप को नहीं ।।१०।। संदेहपारिष कोले परधान । सौचामनी के मन में वल्लु ग्यांन ।। वैराग भाव कमर का चित्त । संसार समौ अनित्य ।।१०८१॥ जो उसको उपर्ज वैरागः । वाक लम न करता त्याम ।। कन्या. विधवा सर क्यू दिन भर.क्यो करि दिवस कंत विन टरै ।।१०८२॥