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पद्मपुराण
अंजनी रुप सुण्यां में घरणां । मोकु काम व्याच्या चौगुणां ।। जो हूँ देखू प्रपणे नयन ! तो मोकु होव सुख चैन ।।१०६७।। मित्र कहै धीरज धर भास । दोन्यू चल्या भई जब रात ।। अजनी मंदिर विग गए । झरोख निकट रिपतिये भए ॥१०६८।। नैन दशमी रूप अथा । अहा कहीं परस्यौ जाय । वसंततिलका दासी को नाम । अंजनी सौं बोली धर भाव ।।१०६६। बडा भाग मेरा अजनी । पवनंजय सा बर पाया गणी ।। बा सम वली न दूजा और । सीमंगी तू पट की ठौर ।।११००।। कंचन रसन सी जोडी बनी । उसो हैं तुम सोभा धणी ।।
पूरब किया पुण्य ते भला । ऐसा वर सौं सनमध मिला ॥११०१।। दासो द्वारा विद्यत वेग की प्रसंसा
मिन केस बोल दूसरी । पिता तुमारे कोनी बुरी ॥ विद्य त वेग सा सजा छोडि । करी सगाई ऐसी दौर 11११०२।। वाके गुण का वार न पार । मुक्ति गामी अरु दातार ॥ बाकी तो इक घडी बहोत । कहीं दीपक कहा रवि उद्योत ।।११०३।।
समंद श्वांडि लो चयरो भरी । अंसी महेन्द्र सेन प्रति करी ।। पवनंजय को निराशा
से बचन पयनंजय सुनी । जानु उर प्रायुध सों हनी ॥११०४॥ सोबत सिंह हुंकारघा रेल । मानु दीया अगनि में तेल | काद पड़ग लीया तिह धार । अजनी सुधा डारू मार ॥११०५।। विभचारणी लक्षण इण भांति । इन सुणि करि कछु कहियन बात ।। प्रहसित मित्र समझावै बैन । कहा न षडग त्रिया परिसेन ॥११०६।। जे वचन सुशि भया मन मंग । व्याह कर नहीं माके संग ।। कहै पवन मै दीक्षा लेसि । प्रात भये सब तजिस्मों भेसि ।।११०७।। प्रात भये उठिया कुमार । मन चाहै ल्यों दिक्षा भार 11 प्रहसित मित्र कुवर मंग चल्या । मता विचार सुपाया मला ।।११०८।। जे तुम लेख्यो दिक्षा जाई । होण कहेंगे सगला राय ।। एक बार लुटें छह देस । पाछे होइ दिगंबर भेस ।।११०६।।
दोन गये पिता के पास । म्हार हैं दिक्षा की पास ॥ बीपुर पर चढाह
एफ वीणती सुण हौ नाथ । दंतीपुर फौं ल्याउं हाथ ॥१११०।।