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मुनि सभाचंच एवं उनका पयपुराण
वाहि महारह बरसो के गए। दिव्या से केवल उपजए । पहुंसे मुक्त रमणि की ठौर, पावागमण कर बहोरि ।।१०८३॥ पत्रनंजय कुमर विजयारध देस । रूपबत मति बड़ो नरेस ।। ताका मुरण व्योरा सों कहै । कहत सुरसत कछु अंत न खहे ॥१४॥ रितु वसंत का मागम भया । राम रंग सब घरि घरि भया ।। कामनी मनि रसि प्रतिभली । परिघरि गाई ममल रली ।। १०८५।। फूले फूस मोरे तरु म । नव पल्लव सई भई प्रचंभ ।। भ्रमर भ्रमरनी कर गुजार । जिहां तिहाँ नावंति धमाल ॥१०८६।।
राकल भूप मावे कैसास । महेंद्रसेगम की पुगी प्रास ।। राजा महेन्त्र एवं रामा प्रहलार की भेंट
तिहां पाया राजा प्रहलाद । वा संग सेमा बहत्त जगाष ॥१०५७।। दोनू मूपति मिले गल लामि 1 रूपयंस प्रति पूरण भाग ।। बारंबार पूछ कुसलात । पूजा कर जिणं को सुप्रभात ।।१८।। राय प्रहलाद महेन्द्रम् कहैं । मेरे मन को गंसा बहें ।। नुम क्यों दुर्बल अधिक नरेस । अपग चित की भणउं अमेस ।।१.२१।। महेन्द्रसेन बोले भपती । मृझ घर कंचा अंजनावती ।।
रूप नषसा सब गुग संयुक्त । धरम भेद जागी सुबहुत्त ।।१०६०।। पवतंजय के साथ विवाह प्रस्ताव
पवनंजय पुष तुम्हारा मुण्यां । तामें विद्या बल मुरण घणां ||१६|| पवनकुमर ने अजनी दई । दोन्युकुलो बधाई भई ॥ विवलसाह लिन भज्या पथ । प्रादितपुर पठ्या दूत विचित्र ॥१०६२।।
तीन दिवस रहे साव्हा माझि । मंत्री जाय पहूंते साझि ।' पदनंजय द्वारा मंजना को देखने को उत्सुकता पवनंजय पूछ प्रजनी रूप । मुण्यो कुंवर ने बहुत अनूप ||
१३|| तीन दिवस बीते किह भांति । व्याच्या काम कुमर के गात ।। कम बीते ये तीन दिवस । कब प्रतःपुर होइ प्रवेश ।।१०६४॥ पवनंजय कुमर विषारं ग्यान । सौलवंत किम होय भयान ।। अष्टगुणा काम स्त्री होय । दिव सौं सील बुराल सो ०६५| मोसा पुरुष जो व्याकुल रहे । मोसुभला न कोई कहे ।। प्रहसित मित्र गया कुमार । मन का भेद कहा तिबार ॥१.१६॥