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मुनि सभाचंद एवं उनकी पद्मपुराण
धरती छिड़के अपर हाथ तो छोडु उगने का बेर
गुणी बाल मल विस्मय भया । माथा नीचे राख्या नया ॥1 तब रावण समझी मन बात
राणी चंदन विछके साथ ॥ आग्या भंग करे नहि फेर ।। ६२४ ।।
बोले सहस्रार सुभ चैन । मंत्री सबद होय मन चैन ॥
हमही इन्द्र समझाया चरणां । तुम उसकी सेवा करि जाय असुभ करम ताकी मति हरी
इन्द्र को छोडना
तुम पुरुष जैसा हम तान ।। ६२५||
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महाबली उपज्या रावणा १६२६ । । से उसने रहें समझाय ॥ सीख हमारी लागी बुगे ||२७||
उन तुमसू किया युध जु घणां । पुरुषा वयण सबै श्रवगरणा ।। पुरुषों का मान्या नहीं कया तो दुख मान भंग होय सह्या ॥१8२८ ।। जे सुबुधि पति सुग्यांन । पुरुषां कहूँ सु करें प्रमान ॥
रावरण सहस्रारसों कहै । भ्राता इन्द्र मेरी लिंग रहे ||२६||
श्री साजा बली न प्रर । जो मन इच्छं सोयों ठोर 13 करो राज निरभय भुवनेस ||३०||
जो चाहो श्रापणा देस
गले तं द्योटाल्यो राज । मनबंधित का है काज ॥ सहस्रार नृप प्रस्तुति करें। तुम दरसन से दुख दीसरे ||३१||
तुम हो त्र ेसठ सलाका पुरुष | देखत मनमें उपजे हरष ।। तार्थ भए हम प्रभु आज रथनूपुर का पार्व राज ॥६३२ ||
है बड़ा पुरुषां की यांव। वहां के बसें हम प्रगटे नांम ॥
बेडी काटि दिया इन्द्र छोडि । तोय हथकडी डारी तोडि ||३३||
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हैय गय आभूषण पहाय । रथनूपुर को दिया पठाई ॥ अपने घर पहुंच्या इन्द्र । सब परियन में भयो श्रानंद ||३४|| इन्द्र चित्त में भर में घना इह् उपसर्ग कहां ह्र बन्या ॥ अपान पाणी नहीं रुवं । एसा रहे रात दिन सोच ।।६३५ ।।
राणी देश भागि भंडार । सबै भयानक लगे उजार
हम गय विभव सेव पालकी । कुछु न सुहाय लगं ज्वालसी ।।१३६ ।।