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मुमि सभाचय एवं उनका पपपुराण
सारस्त्र पुराण सुरतं मन ल्याइ । निस में भोजन भूलि न खाय ।। में जीव निसमें लेय पाहार । तिरजच माहि मैं अपार ॥१००१1। व्यालू करें न छीजती बार । दरसन ग्यांन चरित्र चित्त धारि ।। उत्तम गति में आरिज खंड । पंचेन्द्री को दीजे दंड ॥१००२॥ संयम को पाल धरि भाव । भोग भूमि पावं सुख ठाम ।। सुपात्रा ने विष सों दे दांन । षट् दरसन को रार्षे मान ।। १७०३॥ माप समान सकल ने जांनि । दया भाव सब ऊपर अनि ।। दान कुगात्र फल नहीं कुच्छ । कुगुरु कुदेव कुसास्त्रां तुच्छ ॥१.००४|| इन संगति नीची गति जाय । घर जे कंद मूल फल खाय ॥ पाप पुन्य को भेद न करें । कुगुरु कुदेवा निश्च परं ।।१००५।। से जीव मरि खोटी गति पडें । भव भव दुख दलिद्र अनुसरं ।। सम्यक दर्शन देखें सुध । सम्यकग्यांन चारित्र सुबुध ।।१००६।। श्री भगवंत ने पूजे नित्त । सुमरे गुणवाद परि चित्त ।। निसदिन गुरु की सेवा करें। मिथ्या सजि समकिस प्रादरं ।।१००७।। के व्है देव के भूपती । सम्यक ते होय पंचमगती ।। समकित बिना न पावं मोक्ष । मिथ्याली ते भव भव दुख ॥१००।
सम्यक है चिंतामरिण रतन, लेह पालो घरि घ्यांन ।
भवसागर को है सगुण, सहित कीजिए मान ।।१००६।। जती विरत तेरह विध धरै । बारह विष तपसों अघ हर ।। क्रोष लोभ ए च्यार कषाय । रागदोष ये देय बहाइ ॥१०१०॥ बाईस सह प्रवाधा नित । द्वादस अनुप्रेक्षा सौ चिप्स ।। भोजन कर उडंड प्रहार · संयम का रासै दिनु भाव ॥१०११।। दस लक्षण के पालै नग धरम सफल स्पौं राषै संग ॥ बारह बरत सरावग करें। पांच अणुव्रत निश्च धरै ॥१७१।। फुनि पाल शिस्यायत च्यार । सातौं बिसन तण जिभ धार ।। पुराम गुणग्रत धारै तीन । सो जाण श्रावफ पर चीन ।।१०१३॥
राष सदा मनमें संतोष । तृष्णा तर्ज तो पाय मोक्ष । लोभरस सेठ की कमा
लोभदत्त सेठ की कहो कथा । तिण लक्ष्मी बहुते संग्रही अया ॥१.१४।।