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अनंतवीर्य स्वामी जिरादेव । ए सब चने तास पद सेव ॥ अनंतवीर्य को केवलज्ञान पूजा करें ग्यान कल्याण ||८||
रावरंग द्वारा वन्यमा
रावण के मन भया श्रानंद दरसन कारण देव जिद || सोलह सहस्र भू संग लिये । वैति विभाग गये || |
दई प्रदक्षिणा सुर नर जाय । नमस्कार कीया बहुभाय || दोई कर जोडिर पूछें इन्द्र । बारह सभा में सूरज चन्द्र ।।६६०||
इन्द्र धरणेन्द्र तिहां नरेन्द्र । भया सकल प्राणी प्रानंद || पूछें पुण्य पाप के भेद | सुगत वचन मिट जाये खेद ६६१ । भगवान की वाणी
पद्मपुराण
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श्री भगवंत की वाणी होय । भवियरस लोग सु सब कोइ ॥ छ दरबअर तत्व नु राति । नव पदारथ अर पंचगात ।। ६६२ ।। पाप पुण्य का करें सांग । हिंसा तैं गति नरक निदांन || मद्यमांस सहित जे खाद्द | जंवर पंच कठू बरा काहू की चित दया न करें। ते जीव नीची गति प सात बिसन जे चित में घरें । सात असत्य वचन जे मुख सों कहै । व्यारू' गति मैं सुख न लहैं । असत्य वचन चोरी परिह । ब्रह्मचर्य व्रत विध स करें ||१५||
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नरक मोझ दुख भरें ।।६६४ ।।
परिग्रह प्रमाण करें नहीं मूढ । भव भव में पार्व दुख गुह ।। सात बिसन के सेवहार । ते कबहूं नहीं पायें पार || ६६६ ||
रोग सोग दुख पटें बिजोग । काहू भव में मिटैं न सोग || पाप करभ के भेद अनंत उनका कहत न त ।। ६६७॥ धरम करत सुख संपत्ति होइ । के मनुष्य के सुर पव होइ ।। मनुष्य जन्म का लाहा लेह | सोलह कारण वरत करे ||१६||
दशलक्षण पालं धरि भाव । रतनत्रय जंपय जिए मांग || अठाईस मूल गुण पार्टी सुद्ध । धरम ध्यान में बुधि ॥९६६॥ चार दान दे वित्त समान । निस उठि दरसन करे विहान || यावर सनही सों करें दया भाव चित अंतर घरं ॥। १००० ॥
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