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मुनि सभाचंव एवं उनका पद्मपुराण
पनि पर बात चल्या इन्द्रजीत को रियो
छत्र पमर ता ऊपर भला । का दल पीका ह
रावण देखी सुत पर गाड ।
दोडघा तिहां क्रोध करि बाढ | बारण प्रगति की जाल मेघवांग ज्यों वरषा काल
रावण और इन्द्र में युद्ध
०१।।
अस्त्र गयंद सूर बहू कटे । तत्र न सेन दुहुंघा घटै ॥ रावण दया विचारे हिये । इत उत को यहां क्यों क्षय किये ॥ १०२ ॥
मुझ ने तो है इन्द्र से काम जासु सम्मुख करू संग्राम ।। सुमति सारथी प्रति समझाइ | इन्द्र साम्हां ही चलिए धाय ।।६०३ ।।
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वरण चढ्या सिंह के रथ । हाथी चढ्या इन्द्र समरस्य ॥ दो भूप सामही लरे । छुटै बास मेह जिम पडे । ६०४ || अनार खोड्या वांग बुझी अगति उबरे बहु प्राण ।। इन्द्र तरणी रोन्यां बहि बली । इन्द्र भूप विद्या सांभली ॥६७
७५।।
अंकार जब छोड्या बारा । भयां अंधेरा गए सां ॥ उनके सुकंतु नहि अंधेर । रावण का दल माय घेर ।।६०६ ।। उज्वल बारण राजा चित किया । छुटत ही ग्र घेरा मिट गया |1 इन्द्र करें तब वा सो मार गया क्यों नहि मानें हार ||६०७ । १
रावण चन्द्रहास कर गया। भई मार धीरज नहीं रह्या || कातर भाजि छिपावें जीन | सूर सुभट नहीं भोर्ड ग्रीन ||६०८६ ।।
अजित कुमार सी इंद्रजीत । दामा जुष भया भयभीत || देखे झांक पिता की छोडि होकि गए दोउ तर तब छोड । ६०६॥
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किस ही भांति टरे नहीं पांव । इन्द्रजीत रह्या तिहि ठांच ।। इन्द्र॑ इन्द्रजीत की गह्या । दावाथि लरें हैं तिहां ।। ६१७ ।।
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पतितं दौडं उत्तरे । दीन्यू भूप मल्ल जिम भिरें || कबहूं ऊपर कब तले औसा युद्ध किया उन भलै ॥ १११ ॥ पकडमा इन्द्र बांधि गहि लिया । लेकरि बंदीखानें दिया || सब सेना मन भया आनंद । निरभय थए मिटा दुखद ॥ ११२३
भूपति सकल आय कर मिले। रावण फिर लंका गढ़ चले ।" परियण माहिं बधावा भया । स्मों कुटुंब लंका में गया ।।१३।।