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मुनि सभापंच एवं उनका पमपुराण
अब तुम जठो चलो उस पास । दोन्यां की पूरै मन ग्रास ।। रावण कह दूती सों बात । पर रमणी सग नरकं जात ।।४।। जी झूठी पातल पड़ी । असे नेह जागौं पर तिरी ।। जेसे उलगण डा कोइ । कुकर दौडि गहै फुनि सोइ ।।८४८।। असी जाणि पराई नारि । सत्त न छोडू इस अवतार ॥ दूती बोली फेर रिसाद । तोहि अभाग उदय भयो प्राय ।।८४६।। जैतू वाकी मानें बात । गढ तोकौं प्राव परभात ॥ रावण कही मंदीमें बंशिक तालिको माग मत्री समझि सीख यह दई । विद्या वा पे है गुणमई ॥ रस में लेह के विद्या मांगि । पाछै उसने कीज्यौ त्याग ||११|| रावण फिर दूनी पं गया। रागी प्रति संदेसा दिया ।। तुम मेरी इच्छा जो धरो । वेग प्राय तुम दर्शन करौं ॥८५२॥ रावण पासि मौं ती गई । रस की बात घणी परणाई ॥ राणि कं मन भयो भानंद । विगस जेम कुमोदनी चंद ।।८५३५॥
विद्या सुमरि करि चठी विमाण । रावण की दिग पहंची भान ।। बी सेम्या परि जाय । काम नहरि कहुं कहां समाय ॥८५४। रावग कहै देवी तुम सुग्णौं । गढ परि जावा चित मुझ तणौं । रागी जंय मुणों नरेस । मैं तुमकों भेजा संदेश ॥८५५।। तुम नो याये नहीं उस ठाम । अब किस विध जैहो उस धाम ।। रावण कन्नै विद्या मुझ देह । तो मैं तेरा मया करे ।।८५||
रावण द्वारा विद्या प्राप्त
तब राणी विद्या दी भली। रावण की पूजी मन रली ।। असालक घिद्या सब त बडी । बनसाल गढ़ तिन सौं मढी ।।८५७।। में विद्या पाई तिह वेर । तब सेन्यां लीया गढ घेर ॥ तोंड पोलि कपाट मयंन । घंसे सुभट बाजे जय द्वंद्व ॥५५८।।
रावण की विजय
लूट लिये सब हाट बाजार । मल कुबड़ तब सुणी पुकार | बढ़या कोप बांधे हथियार । सूर सुभट सब लिये हंकार १८५६|