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भूमि सभाषद एवं जमका पमपुराण
ग्राप कर निदा पापणी 1 खोटी बुधि करी में घणी ।। प्रेसा में चित्त प्राण्यां पाप । सो क्यों मिट किया विललाप ||८१६॥ सहमालि निमारमा ! नामजप देखें परा ॥ तब नृप द्विज का पकडपा हाथ | बहुत पाप उप अपघात ॥२०॥ पाप करें प्रगनि जस मरै । विष फांसी फुने गिर पड़े। वा नरक घणां भव होय । ताहि सहाय कर नहीं कोई ।।२१।। ब्राह्मण गमों ऐस सब त्याग । सरि करि अभ्यो घरघा वह सांवि ।। एक दिवस घनहर घनघोर । चली पवन उडि गए महोरि ।।२२।। राजा देखि भयो राग । राजनिति विया सब त्याग ।। सुतने निज पद दियौ नरेस । मापण लियो दिगंबर भेस ।।२३।। दही छीडि गया ईसान | पाया जित स्वर्ग लोक विमर्माण ॥ उन द्विज भ्रमत नर देही यरी । संन्याकी की तपस्पा करी ।।८२४।। मरि कर भया निरमलक देव । अबधि विचार किया बहु भेव ॥ मुमित्र सय था मेरा मित्र । उन मुझसौं रात्री बहु प्रीत ॥५२५।। भब वह मध्य लोक अवतरा । मधु सुमित्र मिलुमो परा ॥ रतन बहुत तिन मयु में दिया । बरछी एक बहु गुगी थिया ।।८२६।। सब सुख सौं राज मधु भूप । कहां लग वरणाउं तास स्वरूप ।। प्रहारह वरष गये जय वीत । बहुत देस के भूपति जीत ।।८२७।। तब फैलास परवत परि गया । श्री जिण विच धरण प्रति नया ।। प्रष्ट द्रध्य सौं पूजा करी । पहें मंत्र जिनवाणी खरी ।।२८।। दुलिंगपुर मल कुवन दिगपाल । सुणि रावण प्राया मुपाल ।। तिनने जीते हैं वह देश । उब उन इहां कीउ परवेस ॥२६॥ पत्री इंद्र भूपर्ने लिखी किंकर जाय दीनता भनी । राबरण नलकूबड परि गया । चिट्ठी पांचि करो तुम दया ॥३०॥ प्रभुगी उसका ऊपर करों । नलकुबड का मय सुम हो । इन्द्र कर पूजा जिण नाथ । सेना दई सूत के हाय ।।३१॥
युख बन
घद्ध गाढा सों जैसों भगे । बाहिर नींकल मत सरो॥ पाप गया पहिव बन पान । पूषा करो लिये पंच नाम ।।८३१॥