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मुनि सभाचंच एवं उनका पद्मपुराण
मंत्री देख भया उल्हास विधनां पुरवी मनकी प्रास || हरिया सुळे ही समुझाय 1 मधु कुंवर ने देहु पठाइ ||७६१||
रावण पासि चला तिह बार बरी हाथ ही हथियार
मंत्री चतुर अधिक प्रसदार ॥ वाके गुण का अंत न पार ||७८२|| रावण पास जब गया कुंवार | नमस्कार करि करधौ जुहार ॥ अधिक रूप देख्यो भरि नंन । सुभ मंत्री विनवे सुभ चैन ॥ ७९३||
हरिवंसराज 11 बरखी दई देवता सिस । दुरजन देख भनेँ भयभीत || ७६४||
या सनमुख कोई रहे न सूर विद्याधर देखिर माजें दूर ।। से गुणवर बीर के बड़े । जिहां लग चाहैं सिहां लग पड़े ॥७६५ ॥
सेव तुमरि वित्त में धरी । माया सेव करण इस घरी ।। रावरण देख किया बहू भावः । टीका किया अधिक मन चाव ॥७६६।।
भनी घडी सुभ दिन साथिया । मंगलाचार कुंवर का किया || सोना दीनां अगर अपार । भांति भांति की करी यार ।।७२७ ।।
मधु चित्रा समये सुभवार मगन रहे नित भोग मकारि ।। मुख में बसं मधुपुरी देश । हरिवंसी सुख करें प्रसेस | ७१८ | | मधु का वृतान्त
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फिर श्रेणिक पूछें करि जोडि । मधु की कहो मुझ बात बहोडि ।। देव मधु क्रिम हुवा नेह । ज्यों मेरा भाजे संदेह ||७६६||
तब श्री जिस की वाणी भई। सब के मन की दुविला गई ।। धातकी द्वीप रावत क्षेत्र धारा नगर तिही राय सुमित ||८०||
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विभवी नाम ब्राह्मण पुत्र दोच्यु विद्या पढ़ें विचित्र । ब्राह्मण पुत्र प्रधिक श्राबीन । पद्मा गिरघा करणका लै बी fte प्रति भिक्षा मांगिर खाई। जैसी ही विष काल विहाय ।। राय सुमित्र विद्या था बॉल राज बैंठि तुझ करूं मोल ||८०२|० बैठ्या राज तबै सुष भई । बहुत विभव ब्राह्मण ने दई ।। आप वराबरी वभिरण किया। राजा बन क्रीडा में गया ||८०३ ॥
घोडा छुटया भील की पुरी । वन देख्या सब सुध बीसरी ॥ तिहां राजा भीले ने तथा । व्याही वनमाला सुख लह्या || ८०४ |