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पापुराण
वरषा पाठ दिवस की झडी । चतुरमास की छविण करी ।। सवहीं की पुगी मन पास । रावण भुज भोग विलास ।।७७६।। रहे सतण महान भावास जोगह हिप का मास ।। राग रंग गावं मल्हार | मंवरष प्रति पन हुन धार ।।७८०।। मोर भंगार पपीहा रटो । चउघा मंडी काली घटा ।।
विजुली चिमक गरजै घना । पैसा सुख रावण नै बन्या ।।७।। भाद्रपद के व्रत
कोई नठाउं भीजत जाइ । कीचड माहि बहुत दुख पाय || भादो मास धरम का शान | पूजा दणी सामग्री आरण ||GE२॥ सोलहै कारण का दस कर । दया अंग निस वासर धरै ।। पूजा रचना मैं बीत घडी । चरचा कर जैनमत खरी ।।७५३।। दस लाक्षरण का पाल अंग । बहुत वरत धारी ता संग ।। चंदवा तणां बहुत देहुर । रंग सुरंग बिछवणां कर ।।७।। रतनय वस पाल लोग । मन वच कामा साधे जोग 1। पूरणवासी पूनिम चंद । रहस रली मनमे पानंद ||७८९॥ सब ही में दीनी ज्योणार । बहुत बीनली कर मनुहार ।। पुण्य प्रसाद अधिक सुख भया । बेस देस सुख भुगत्या नया ॥८६॥ इति श्री परमपुराणे राजावत अस विधानकं ॥
चौपई
वशम विधानक रावण को कन्या का मधु के साथ विवाह
रावण मन में समझ ग्यान । कन्यां वेसकर भई प्रमान It उत्तम कुल कोई देख कुमार । करो काज सुख घरी विचार 11७५७।। बहरै कक इन्द्र नर दौड । कैसी बात बाइक भोरि ।। कन्या व्याह करि नीवरू । मन घष का संसा परिहर ।।७८८।। मंत्री देस देस कौं चले । पुरपट्टम सब देखें भले ।। माये मथुरा नगर मझार । हरिवाहन नृप माधवी नारि ||७८६।। मधून पुत्र महा बलवंत । स लछन छवि शोभायंत ।। सम्यग्दृष्टी महा विचित्र । नाम सुणत सब कांप सत्र ॥७९॥