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वसु राजा
दशम विधानक चौप
सरोवर निकट किया दोहरा । श्रादिनाथ रचना सों परा ॥
वीस विन जिरण प्रतिमा किये। भई प्रतिष्ठा चचं नये ॥ ६४६ ॥
पद्मपुराण
देस देख तें ये लोग । चलि श्राये बंदर जिए जोग || नरपति नाम बहुत तिस मिले । श्रादर भाव किये तिल भले || ६४७।।
सगला नें दीन्ही ज्योणार । बहु वित्र कीये व्यंजन सार ॥ अष्टद्रव्यसुं पूजा करी । पंडित पढी जिनवाणी परी ||६४८ ।।
यज्ञ मेर की चर्चा
दीन दुखी जन दीनां दनि । सव ही का राष्या सनमान ॥ धरम जुगत कीनी तिहां घनी घरम तीर्थ की सोभा वरणी || ६४६॥
श्रेणिक राजा स्तुति की। यज्ञ भेव भाषो इस घरी ॥
श्री जिवाणी अगम प्रबाध । पूजित है प्राणी को साथ || ६५० ॥
गौतम स्वामी कहै अस्थाइ | बारह राभा सुगा मन लाय ॥ नगर अजोध्या राजा सुप्रतिष्ठ । श्रीकंता रांशी समदिष्ट ।। ६५१ ।।
वसुत्र पुत्र जनमिया कुमार । क्षीरकदम की सोभा सार ॥ स्वस्तिमती बाकी मस्तरी । परपित पुत्र भया सुभ घरी ।। ६५२ ।। तीज शिष्य नारद [तिहां पढ़ें । तीभ्यां की बुधि दिन दिन बढे || चार मुनिवर निकसे श्राय । कहैं बात अप सदभाव ||६५३ ।। मुनिवर जपै छन महला एक जाय जीव नरक में विवेक ।। वीर कदम सुरिण कीया सोच । छुटी भई शिक्षा झालोच ।। ६५४ || वं प्रप मन मांही रली । पीरकदम जिय श्राई भली ॥ चल्याउनु के पीछे लागि । पहुंस् थाएक पूरा भागि ।।६५५ || नमस्कार करि विनती करी। प्रभु मोहि दिक्षा दीजे शुभ घरी ॥ तुम संगति पंचमति लठ्ठे । चरणकमल ढिग तपस्या गहुं ।। ६५.६ ।। क्षीरकदम बैठ्या धरि मौन । परवत पुत्र घरकु किया गौन ॥ स्वस्तिमती तब कहें रिस्याइ । पिता साथ छोयो कि भाई ||६५७ ।।
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