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पापुराण
चल्याल कर प्रतिष्ठा भली 1 संघ चलावे मन की रली ।।
तब परवत द्विज असे सही । च्यारदान है,नाही सही ।।६७३।। बारव एवं पर्वत के मध्य चर्चा
तब पूछ नारद फिर बात । कोण दाग दीजे किरा भांति ।। बोले विप्र दाण ए सही । कन्या गउ अर दीजे मही ।।६७४॥ सत्री दांन मंदिर सतखना । सोना रूपा जवाहर घणां ।। मज गण महिष प्रश्व को होमि । प्राशुष भली संवारं भौमि ॥६७५।। गडहा भाँडा खौदै परे । मच्छ कच्छ तामें ले धरै ।। पंडित विध वेद धनि पढे । सकल जीव अग्नि में डने १६७६।। मांस प्रसाद बांटि सब खांइ 1 जज्ञ किया बैंकूला जाई ।। नारद मुनि समझाय लाहि । २ उमस नरकात भाइ ।। ६७७।। जीव हतर भषंगो मांस । उनकी कदे न पूरव प्रांस ।। नीच गति वेहै भ्रम है धनी । ते दुख वरग सकं को मुनी ॥६७८।। बोले विप्र होम क्यू होह । हत्या करत उर जो कोइ ।। नारद कहै होमिए अचित । लगै दोष जालिये सचित्त ॥६७६।। प्रज कहिए छह बरस का घांन । हग गुरु मुखस्यो यों वखांन ।। ते हम होमैं अग्नि मझार । जिस का दोष न लग लगार १६८०।। परवत कहै अज कहिए वोंक । नारद मण में प्राण सोक ।। दोन्यू कहैं बसु नृप की साष । चरचा कर सभा में भापि ॥६८१।। जिसकी भूपति मान सांच । जिसका वचन सब मानं पांच ।। जे हारे रसना द्वं पंह । पैसा मंडया बाद प्रचंड ।।६८२।। दोन्यु पहुंचे राजदुवार । नरपति था तब महल मझारि ।। फिर आये थे पापणे गेह । प्रात भए पूछेगे एह ।।६८३॥ परबत कही माता सौं बात | नारद करसी दाद प्रभात ।। मैं अज कह्या छाले का नांव । वह छह बरसी धान कहाव ।। ६८४।। जो हार राजा की सभा । तिसकी जीभ होयगो प्रभा ।। माता सुरिंग करि मुंडी घुन । करी नपूती सुत सों भने ।।६८५॥ न तो झूठे बोल्या बैन । पहया कूप में देषत नैन । जो क्यों जीव कूप मझारि । राजा तोहि डारिहै मारि 11६८६॥