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मुगि समाचन्द एवं उनका पद्मपुराण
ते जे उपाई पाप की बुधि । मो तन मूलि गई सब सुधि । मोहि कहा था राजा बोल । जो कछु कहुं वस्तु प्रमोल ॥६७।। मनवांछित मांगों से लेहुं । मिधानी जी प्राज्ञा देहु ।।
तब में वचन लिया निरधार । जन चाहं दीजो तिह वार ।।६८८|1 स्वस्तिमति द्वारा वसु राजा से वचन मांगना
पब मांग राजा पं जाय । म बचन तें लेह हुडाय ।। स्वस्तिमती राज। पं गई । अादर मान राव बहु दई ।।६८६।। बार बार पूछ कर जोरि । कैसे कृपा करी इस ठोर ॥ मिथाणी बोल समझाय । मेरी दक्षिणा दीजे राय ।।६६०| वेग अंजुली गाणी लेहु । अपरणा वचन कह्या सो देहु ।। राजा तब अंजुली जल मरघा । मांगो जो चित भावं परा ॥६६१॥ परवत तणी कथा सब कही । तुम बिन सरणांगति को नहीं ।। उसनें सांचो करो नरिद । पुत्र भीख मुझ यो भवनींद ।।६६२।। राजा सुणि करि मी हाथ । बारपार घूणं निज माथ ।। इण मिश्राणी मुझन छल्या । इण यह बयण न भाष्या भला ।।६६३|| झठ न्याय जो राजा कर । निश्च अधोगति नरकं पड़े ।। वचन दीया फेरु किस भांति । असे सोचत बीती रात ।।६६४॥ आया नारद उठि परभात । परवत चल्यो कहु तुम बात ।। राजसभा में दोन्यु गया 1 ग्यांन चरचा में वाद तब भया ।।६६५।। राजा कहै बचन बसि काज । परबत्त कहे सुमामों राज ।। धरती फाटि सिंहासरण धस्या । तब नारद राजा प्रति हंस्या ।।६६६।। मपति अजहू न्याय विचार । झट कहे सिर बांधि है भार ।
नृप बोलें परवत रूप देषि । सिंहासस धरती में प्रेषि ।।६६७॥ मारव का वचन
नारद बोले सुनि हो राव । असत्य वचन का देखो भाव ।। वे ही वयण बोले भूपाल । प्रासण सहित गया पाताल ||६६मा। घसु भूपाल नरक में जाय । सहै दुःख तहा बिललाम ॥ झूठ श्रवै अरु कर भन्याव । ते प्राणी बहुते दुख पाँव ॥६९९|| सगली सभा प्रथम भई । बहु फटकार विन न दई ।। पापी दुष्ट पाप का मूल । राजा तणा भया ए सूल ||७०॥