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मुमि सभाचव एवं उनका पपपुराण
और बार पोथी ले कांख । तो पिता घापणि दिग राखि || तब बोले परवत समझाय । मोहि अगाउ दिया पठाय ।।६५८।। जहां दुचित जोर्व बाट । हां उन ब्यौल्याई मन पार ।। रयण मई माया नहिं गेह । चिता पापी उनकी देह ॥६५६।। प्रात भयो उठि चास्यो पूत्र । पिता तगी चटसाल पहूत ।। वहाँ नहिं देच्या मागे गया ! बनमें पाया भोन गहि रहा ।।६६।। कहै पिताजी चलिये गेह । भयो दुचित कुटंब दुस ह ।। इनतो माया मोह सब तज्या। सुत वास पाया घर भज्या ।।६६१।। सम्र व्रतांत जननी प्रति कह्मा । सुणी बात मात दुख सहया ।। खाय पछाड कर बिललाट । परदत पासि धुणे ललाट ।।६६11 तुम जोगीश्वर नत घरी । हमरी मित' कछु नहीं करी ।।
वाका ध्यान निरंजन लम्या । बोल फिसही कोण का सगा ।।६६३।। नारद का प्रागमन
फिर पाये घर बहुत उदास । नारद ग्राया गुरुनी पास ।। गुरणी में समझा बात । नदी नाव ज्यौं फुटंब संघात ।।६६४। उतरे पार विधुर सब गये। अहसै संग परातम भए । सुपने केसा इह संयोग । छोडि दिया संसारी भोग ।।६६५५ तातें करो मति कछु श्री सोग । भयानंद मुनिश्वर माधं जोग ।। सुप्रतिष्ठत भूप प्रजोध्या धनी । क्षीर कदंब की जबउ न मुगी ।।६६६।। वसु पुत्र में सोप्पा राज | झापरण किया सुगति का साज 11 पाल परजा बसुध नरेस । निरभय राज कर भुवनेस ।। ६६७11 नारद सम्यग्दृष्टी मुनी । एरवत थारा मिथ्या धनी ।। दोक प्ररणा शास्त्रन पढ़ें । परमत मन में पोटी गर्दै ।।६६८।। घरचा कर यज्ञ अर दान । पंच महाव्रत हुँ विधि जान ।। पंच अणुव्रत धावक करै । महानत जोगीस्यर घरै ।।६६६।। पंच समिति प्ररु तीन गुपति । प्रलाईस मूल गुण संयुक्त ।। किया चौरासी पाल सदा । छह रितु सहै बाईस मापदा ।।६७०।। मछम बादर जेते जंतु । दया भाव स्र ष संत ।। बारह अनुप्रेक्षा सु बिचार । भवसायर तें उतर पार ।।६७१।। पन क्रिया जुनावक करें। च्यारि प्रकार धान विस्तरं । पूजा कर सामायिक दान । छह दरशन का राखै मान ।।६७२।।