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भुमि सभाब एवं उनका पपपुराण
रावण का सहलरश्मि से युद्ध
राजा निकल्या अल ते दुरि । आभूषण पहरघा भर पूर । शस्त्र बांधि कर भया तयार । सुर मुभट सब लिये हंकार ॥६०७१। ऐंसो वात रावण पं गई । सैन बहुत तिन प्रापण लई ।। मिले परसपर मांडी राह । जैसा सू तसा कर मार ।।६०८॥ सेना झझि दोऊ थी मरी। रावण पाया वाही घरी ।। अपणे भागते देखे जोग । सहस्त्र रश्मि के कछुवान सोग ।।६०६।। फिर संभासि करि धीरज दिया। मार मार शब्द बाहु किया ।।
रायण के सन्मुष होय लरं । दस सिर का पछु भय नदि करें ॥६१०।। धनुष गला सर छोडे घने । निरभय होय सर्च ही हने ॥ रावण मनमें भचिरज धर। मेरे प्रागै जम से टरै ॥६११।। यह वा बीस है स जी । काई झुमारे रे । २० धनुष ताण करि मारचा वारण । रुधिर चाल्या बारा पर मान ।।६१२।। तब रावण इस्ती पर प्राय । सहस्र रश्मि नै मारै पाद ।। दोउं वाथांकाथ जु लरें। हस्ती त घरणी पर गिर ॥६१३।। कबह ऊपर कबहू तल । महाबली ते इसपर लरें। बहुत लोग रावण के पाय । सहस्ररश्मि ने बांश्यो राइ ।।६१४।। चाकु भेज्या लंका बांधि । मारग घलत लिया नृप साथि ।। रजनी भई लिया विधाम । सुम्न सेन्या सूते उस ठाम ।।६१३॥ बाजे प्रातं समै बहु बजे । सबद सुनत सब का मन रजै ।। रावण उठ सामायिक विया । सिंघांसरण ऊपर पग दिया ।। ६१६।। राजा प्राय करे नमस्कार । मुकटबंध के भूप हजार ।।
सतबाहन मुनि द्वारा उपवेश
सतवाहन मुनिवर तप सूर । अनंतबल है रिदि भरपूर ।।६१७।। पा लोंग मुनीश्वर जात । सहस्ररश्मि की भाषी बात ।। रावण तुमारा सुत बोधिया । वंदीखाने ले कर दिया ।।६१६|| सुपी पुत्र की चिता पर्स । उनी माया सब की पगिरि ।। फिर कहु दया भाव मित लाम । मुनिबर : रावण पं जाय ।।६१६ ।।