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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
वरण द्वारा इन्द्र से युद्ध करने का विचार
दुरजन रह्या नहि किए ठाय । इद्र ऊपर त भई बठाइ ॥ देस देस से आए राय । परदूवण मन विया दाव ।। ५८० ||
अंसी बार रावण में जाउं । वासु मिले मिर्ट अंतराम ॥ भली भांति मिलने का बले 1 चड देस भूपति संग भलै ।। ५८१ ।।
रावण सुणि खरदूपरण बात । महा सुख मान्यां दण भांत || भली बार परस मा ती भाइ मिले गल लाइ || ५६२ || बढि सव भ्रम चले विमाण | बोझल भया श्रवभरि ।। बाजे बाजे बुरं निसारण 1 हस्ती गरजे मेघ समा ।।५८३|| एक सहल छौह्न पर एक एक सहस सुर दल की टेक 1 पुष्प विषां परि बैंठा आप । मनमें जपै श्री जिनेस्वर जाप ।। ५८४ |
सुमरण किये मनबंधित सिघ । सुख संपति पाव बहुरि ||
रबि अस्ताचल प्रोझल भया । परवत पर इनौ बासा लिया ।। ५६५॥
ज्या परि पोइ सब भूप । शशि उडगरण की जोति अनूप ।। भयो प्रभात उठे सब लोग नोबत बाजं हवं प्रयोग ||५६६ ॥
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गावै गुलियन राग बहोत । रवि की भई किरण उद्योत || रावण बैठा कंचन पाट । विरुद वषां जाचक भाट ।।१८७।।
कंचन कलस नौर सुभरें । करि सनांन फिर सुमरण करं || तुरी पलाण भये प्रसवार । रमवाताल गए तिह बार ||
पाल मनोहर निरमल नीर । हंस आदि पंषी बहु तीर ॥ जलचर जीव बिराज प्रोर । पंछी करें कुलाहल सोर ॥५६॥
बैठक छत्री चाट | मंदिर बण्या बीच घरि सूत । किंकर आइ बात जो कही । मैं देषि हैं उत्तम नहीं ||५६०११
तिहां तुम प्रभृ उतरो जाइ । सुख पावे सेना तिरा ठाय ॥ ममती नगरी है तिहां । मानसरोवर सोमं जिहां | ५६१ ।। तार्क निकट रावण उतरभा । सकल सैन सों वन वह भरघा ।। डेरा सोभै सुरंगी रंग। माभूषण सोभं प्रति चंगि ।। ५६२ || सहस्रम राय सरोवर माहि । सहसनारि संग कर उछाह ॥ दीसे लोचन जेम कुरंग । श्रीडा करें भूप के सग ।। ५६३ ।।
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