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मुनि सभाचं एवं उनका पमपुराण
सूर मुभट सब लिये बुलाय । घढ़ि पाया लड़ये के भाय । वभीषण माय फिरचा अडवार । दोवू दल गुरघा तिह बार ।। ४४५३ संप्रोट भभीषण में कहै । अव तू मोतें सनमुख रहै ।। तोकु सही भभीषण नाम । जीवत पडि बांधि ले जाउं ॥४४६।। वभीषण की सेना बहुमरी । दशानन भी पाया तिह घरी ।। चन्द्रहाहांस लीया संभालि । संपोट का दल किया संहार ||४४७।। संपोट भाज गया जम पास । बोले वचन मुख लेंइ उसास ।। जम सांभलि ली सौं बात । वयो कोप केहर को जात ।।४४८।। जम की साथ चले सामंत । सेनां नहीं लामैं अंत ।। चढि पाया बाजिन बजाय । कुभकरण भभीषण सनमुख प्राय ।।४४६।।।
दूहुधा सुभट जुझ रणमाहि । उडी रेणु मानु भई सांझ ।। दशानन द्वारा युद्ध
दशानन पाया जण ठाव । युध भेद समझ सव दाड़ ।।४५०।। दस सर बीस मुजा बलवांन । दुरजन मारि कोये घमसान ।। जम इनके सन मुख ह्र बरपा । सर लाग्या रथ से गिर पडया ॥४५॥ सोतक नाम जम का इक पूत । लोग पिता की उठाई तुरन्त ।। लोथ राष करि किरणही मोम । स्थनूपुर गया इन्द्र के ठाम ।।४५२।। ध्यौरा सकल इन्द्र सौं कह्या । जमने मारि देश उन लह्मा ।। दशानन नाम महा बलिवंत । देखत ताहि प्रां ह्र भंत ॥४५३॥ बीस भूजा कहिए दस सीस । जाकी कर न सके कोई रीस । सुणत बात कोप्या जिम सिंह । साथि सैन भट लिये अभिन्द ।।४५४ । देस देस तें लिख फरमान ! दूत पठाया पतुर सुजान ।। सबै नरेन्द्र बुलाये राय । जोतकी पूणे तुरत बुलाय ।।४५५।। विद भरी जोगित बुलाय । हिब चलस्यो तो होसों हार ।। कहै इन्द्र अब निवाल्या बार । जो फिर जाऊं नगर सभार ।।४५६।। तो सूरिमा पनौं नवि रहै । मांनी हारि सहु कोई कहै ।। पुरुषा सब समजार्थं बात । वतीस दांत नहीं मानुहार ॥४७॥ अंतहपुर में फिर गया इंद्र । सौय बुलाय कर पानंद ।। जम फिर माया इंद्र के पास । पुत्री दई रूप गुण पास ॥४५८।।