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मुनि सभाब एवं उनका पद्मपुराण
चढ़े कोपि जिस पर केहरी । देवत ही सब की सुधि हरी ।। राने चुकत्र दुरी । मुहं :
1र र सुजान .NETI हाथ गह्या नांगी तरवार । दुहंध पई बाण की मार ।। बरसी हाथ धनुष सर लीये | ताकि मारे अरियर के हिये ।।५००। कोई सुभट गदा कर गई। तब सागर मंत्री इम कहै ।। पंडित गुनी अधिक सुशान । बचन बालि प्रति जप मान ।।५०१॥ सैन दसानन की है घनी । तुम हो एक नगर के धनी ।। उन सगली जीती है मही । वा समान कोई षेचर नहीं ॥५०२।। चन्द्रहास जो मार षड्ग । तो तुझने ह बहुत उपसर्ग ।। इतना जीव मरै रण मांहि । घर पर सोग बध दुखदाय ।।५०३।1 इन जीवा को क्या ल्यौ पाप । अब तुम षिमा करो प्रमु पाप ।। नालि कहे मंत्री सुरिण बात । देखि जु इण लगा हाथ ।।५०४।। सब सियाल मिल इकठा होम । एक सिंह नबि जीत कोइ ।। इणका काल लिष्या इण ठाम । मारो ओर मिला नाम ।।५०५।। मंत्री फेर वीनतो करें । वाकी सर भर क्यों बल पर। ज्यों मनुषां केहर में गहै । पिजर माहिं परवस दुख सहै ।।५०६।। वह तुमनें पकाई करि घेर । तातं करो छिमां इस वेर । बहुरि बालि मंत्री सों कहै । सूरापन षिमा त न रहें ॥५.०७।। मप कहै इन मांनी हारि । चरचा इम पाल संसार ।।
मस्तक मैं नाउं भगवंत । मुरिण 4 वरत गयो इण भंत || ५०८|| वालि द्वारा दीक्षा ग्रहण
जो अब जाइ भिलु तजि जंग। तो हो मेरा व्रत भंग ।। सुग्रीव ने सौंप्या सव राज | पापण फियो मुक्ति की साज ।।५०६।। गगनचंद्र मुनि पास जाय । दिक्षा लई मन बन क्रम काय ॥ बारह अनुप्रेक्षा चित धरै | मास उपास पारण करें ॥१०॥ तेरह विष पाले चारित्र । जीत्या क्रोध लोभ मंद सत्र ॥ बाईस परीसा सहै सरीर । मन वच काया राषी पीर ॥५११।। निस दिन चिदानंद लिख लाइ । विद्या सिद्ध भई तब प्राइ ।। बल अनंत विद्या गुरण देर । भू उलटत नहीं लागं वेर ।।१२।।